सिर्फ एक बार....

Friday, February 20, 2009 · 0 comments


* ~* ~* ~* ~* ~*जानवर* ~* ~* ~* ~* ~*
तेरे होठों की हंसी बनने का ख्वाब है,
तेरे आगोश मे सिमट जाने का ख्वाब है,

तु लाख बचाले दामन इश्क़ के हाथों,
आंसमां बनके तुझ पर छा जाने का ख्वाब है,
आजमाईश यु तो अच्छी नहीं होती इश्क़ की,
तु चाहे तो तेरी तकदीर बनाने क ख्वाब है,
वो मोत भी लोट जाये तेरे दरवाजे पर आके,
तुझ को ऐसी जिन्दगी देने का ख्वाब है॥
* ~* ~* ~* ~*तेरे नाम* ~* ~* ~* यही तो है।

वो भी एक वक्त था.....

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मैंने कहा था ना कि
मैं तुम्हारे ख्वाबों में आऊँगी,
इसी कारण सजने को- कल बाग में गई थी मैं, मेंहदी लाने।
निगोड़े काँटे, शायद दिल नहीं है उनमें, चुभ कर मुझमें, मुझे रोक रहे थे।
लेकिन तुमसे वादा किया था ना मैंने,
इसलिए बिना मेंहदी लिए मैं लौटती कैसे।
फिर कल शाम में मैं बड़ी बारीकी से मेंहदी को सिलवट पर पीसी।
हाँ, कुछ दर्द है हाथ में,
लेकिन क्या- कुछ नहीं।
एक बात कहूँ तुमसे,
शायद सिंदूरी आसमां को हमारे इकरार का पता था,
इसलिए कल रश्क से,
वह सूरज को लेकर पहले हीं चल दिया।
फिर तुम्हारे लिए,
बड़े प्यार से मैंने अपने हाथों पर मेंहदी रची ।
कल वक्त पर आई थी ना मैं,
तुम्हारे ख्वाबों में,
आखिर तुमसे वादा जो किया था मैंने।
एक और बात कहूँ,
कल से बहुत भूखी हूँ मैं,
हाथों में मेंहदी थी ना,
सो, कुछ खा नहीं पाई।
अभी सोने जा रही हूँ,
अब तुम मेरे ख्वाबों में आकर - मुझे कुछ खिला दो ना।

बस अब आ भी जाओ......

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जिस को देखूं साथ तुम्हारे , मुझ को राधा दिखती है,
दूर कहीं इक मीरा बैठी, गीत तुम्हारे लिखती है।
तुम को सोचा करती है, आँखों में पानी भरती है,
उस पानी से लिखती है, लिख के ख़ुद ही पढ़ती है।
यूँ ही पूजा करते करते, कितने ही युग बीत गाये,
आँखें बंद किए आँखों से, कितने जीवन रीत गाये।
आँखें खोले इस जीवन में, पलकों में तुम को भरना है,
जिस दिल से पूजा उस दिल से, प्यार तुम्हे अब करना है।
आडा तिरछा भाग्य युगों से, तुम सीधा साधा कर दो,
बाहों में भर लो तुम कान्हा, मीरा को राधा कर दो,
बाहों में भर लो तुम कान्हा, मीरा को राधा कर दो॥

तुम फ़िर भी......

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**************जानवर**************
कहा था ना इस तरह सोते हुए छोड़ कर मत जाना
मुझे बेशक जगा देना,
बता देते मुहब्बत के सफ़र मे साथ मेरे चल नहीं सकते,
जुदाई के सफर में साथ मेरे चल नहीं सकते,
तुम्हें रास्ता बदलना है मेरी हद से निकलना है,
तुम्हें किस बात का डर था,
तुम्हें जाने नहीं देता?
कहीं पर कैद कर लेता?
अरे पागल मुहबत की तबियत में जबरदस्ती नहीं होती,
जिसे रास्ता बदलना हो उसे रास्ता बदलने से
जिसे हद से निकलना हो,
उसे हद से निकलने से,
ना कोई रोक पया है,
ना कोई रोक पाएंगा.
तुम्हें किस बात का डर था?
मुझे बेशक जगा देते,
मैं तुमकों देख ही लेता,
तुम्हें कोई दुआ देता,
कम से कम युं तो ना होता,
मेरे साथ...! हकीकत है,
तुम्हारें बाद खोने के लिये कुछ भी नहीं बाकी,
मगर खोने से डरता हुँ,
मैं अब सोने से डरता हुँ॥
*********तेरे नाम****** यही तो है*******

श्रीकृष्ण/ देवल आशीष की नज़र में

Thursday, February 19, 2009 · 3 comments

"विश्व को मोहमयी महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा,
सारथी तो कभी प्रेमी बना तो कभी गुरु धर्म निभा गया कान्हा,
रूप विराट धरा तो धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा,
रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा,

चोरी छुपे चढ़ बैठा अटारी पे चोरी से माखन खा गया कान्हा,
गोपियों के कभी चीर चुराए कभी मटकी चटका गया कान्हा,
घाघ था घोर बड़ा चितचोर था चोरी में नाम कमा गया कान्हा,
मीरा के नैन की रैन की नींद और राधा का चैन चुरा गया कान्हा,

राधा नें त्याग का पंथ बुहारा तो पंथ पे फूल बिछा गया कान्हा,
राधा नें प्रेम की आन निभाई तो आन का मान बढ़ा गया कान्हा,
कान्हा के तेज को भा गई राधा के रूप को भा गया कान्हा,
कान्हा को कान्हा बना गई राधा तो राधा को राधा बना गया कान्हा,

गोपियाँ गोकुल में थी अनेक परन्तु गोपाल को भा गई राधा,
बाँध के पाश में नाग नथैया को काम विजेता बना गई राधा,
काम विजेता को प्रेम प्रणेता को प्रेम पियूष पिला गई राधा,
विश्व को नाच नाचता है जो उस श्याम को नाच नचा गई राधा,

त्यागियों में अनुरागियों में बडभागी थी नाम लिखा गई राधा,
रंग में कान्हा के ऐसी रंगी रंग कान्हा के रंग नहा गई राधा,
प्रेम है भक्ति से भी बढ़ के यह बात सभी को सिखा गई राधा,
संत महंत तो ध्याया किए माखन चोर को पा गई राधा,

ब्याही न श्याम के संग न द्वारिका मथुरा मिथिला गई राधा,
पायी न रुक्मिणी सा धन वैभव सम्पदा को ठुकरा गई राधा,
किंतु उपाधि औ मान गोपाल की रानियों से बढ़ पा गई राधा,
ज्ञानी बड़ी अभिमानी पटरानी को पानी पिला गई राधा,

हार के श्याम को जीत गई अनुराग का अर्थ बता गई राधा,
पीर पे पीर सही पर प्रेम को शाश्वत कीर्ति दिला गई राधा,
कान्हा को पा सकती थी प्रिया पर प्रीत की रीत निभा गई राधा,
कृष्ण नें लाख कहा पर संग में न गई तो फिर न गई राधा."
**************************************************देवल आशीष

तुम तो ऐसे नहीं थे.......

Tuesday, February 17, 2009 · 1 comments


*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*
यही वफ़ा का सिला है, तो कोई बात नहीं,
ये दर्द तुमने दिया है, तो कोई बात नहीं.
यहीं बहुत है की तुम देखते हो "साहिल" से,
मेरी कश्ती डूब रही है, तो कोई बात नहीं.
रखा था आशियाना-ए-दिल में छूपा कर तुमको,
वो घर तुमने छोड़ दिया है, तो कोई बात नहीं.
तुम्हीं ने आईना-ए-दिल मेरा बनाया था,
तुम्हीं ने तोड़ दिया है, तो कोई बात नहीं
किसकी मजाल कहे कोई मुझको दीवाना,
अगर यह तुमने कहा है, तो कोई बात नहीं.
इश्क के फूल भी खिलते है, बिखर जाते है,
जख्म कैसे भी हो, कुछ रोज में भर जाते है.
उन ख्वाबों में अब कोई नही और हम भी नहीं,
इतने रोज से आये है, चुपचाप गुजर जाते है,
नर्म आवाज, भोली बातें, नरम लहजा,
पहली बारिश में ही, सब रंग उतर जाते है.
रास्ता रोके खड़ी है, वही उलझन कब से,
कोई पुछे तो कहें क्या की किधर जाते है??
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है
***********************************साथ में जावेद अख्तर

ख्वाहिश.....

Saturday, February 14, 2009 · 2 comments


*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
काश मैं तेरे हसीन हाथों का कँगन होता,
तु बड़े चाव से.....बड़े मन के साथ,
अपनी नाजुक सी कलाई में चढ़ाती मुझको,
और बेताबी से फुरसत के लम्हों में,
तु किसी सोच में डूबकर जो घुमाती मुझको,
मैं तेरे हाथ की "खुशबू" से महक-सा जाता,
जब कभी मुड़ में आकर चुमा करती मुझको,
तेरे होठों कि हिद्त से ढक-सा जाता,
रात को जब भी तु नींद के सफर पर जाती,
मैं तेरे हाथ का एक तकिया बन जाता,
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है।

यार को मैंने.....

Thursday, February 5, 2009 · 1 comments

***************जानवर***************
कुछ दिन पहले मुहब्बत को मुहब्बत समझा हमने,
मुहब्बत हुई, मुहब्बत को अपना समझा हमने.
मुहब्बत में इस कदर मदहोश हो गये,
इस कि बेवफाई को वफा समझा हमने.
जख्म इस कदर मुहब्बत ने दिये,
इन जख्मों को फुल समझा हमने.
मुहब्बत कि चीख-ओ-पुकार इस कदर थी,
आस-पास के लोगों के रोने को हसनां समझा हमने.
मुहब्बत कि शिद्दत में आंखें इस कदर चौंधिया गये,
हर चमकती हुई चीज को सोना समझा हमने.
दीवाना इस कदर मुहब्बत ने बनाया हमको,
अपनों को बैगाना और "उनको" अपना समझा हमने.
मुहब्बत कि यादें दिल पर कुछ युं नक्श कर गई,
भुलने कि कोशिश में खुद को ही भुला दिया हमने.
**********तेरे नाम*************यही तो है.

वो तेरा नाम था.....

Monday, February 2, 2009 ·

***********जानवर************
वो कुछ सुनता तो मैं कहती,
मुझे कुछ और कहना था.
वो पल भर को जो रुक जाता,
मुझे कुछ और कहना था.
कहा उस ने सुनी मेरी, सुनी भी अनसुनी कर दी,
उसे मालुम था इतना,
मुझे कुछ और कहना था.
गलतफहमी ने बातों को युहीं बदल डाला वरना?
कहा कुछ ओर था, वो कुछ ओर समझा.
मुझे कुछ और कहना था.
********तेरे नाम********यही तो है