कुछ तो है…….

Saturday, January 24, 2009 · 4 comments

*************जानवर****************
कोई एक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है,
हजारों ख्वाब आंखो में सजा कर कुछ नहीं मिलता.
उसे कहना कि पलकों पर ना टांके ख्वाब के झालर,
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता.
यह अच्छा है कि आपस के भ्रम ना टुट पायें,
कभी भी दोस्तों को आजमा कर कुछ नहीं मिलता.
फकत तुम से ही करता हूँ मैं सारे राज की बातें,
हर एक को दास्तां-ए-दिल सुना कर कुछ नहीं मिलता.
अम्ल के सुखते रंग में जरा सा खुन शामिल कर,
मेरे हम-दम फकत बातें बना कर कुछ नहीं मिलता.
************तेरे नाम***********यही तो है

तुम भी कैसे.........

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***********जानवर************
तुम मेरी आंख के तेवर ना भुला पाओगे,
अनकही बात को समझोगे तो याद आऊँगा.
इसी अन्दाज में होते थे मुखातिब मुझसे,
खत किसी और को लिखोगे तो याद आऊँगा.
सर्द रातों के महकते हुए सन्नाटों में,
जब किसी फूल को चुमोगे तो याद आऊँगा.
अब तेरे अश्क में होठों से छुड़ा लेता हुँ,
हाथ से खुद इन्हें पोछोगे तो याद आऊँगा.
शॉल पहनाएगा अब कौन दिसम्बर में तुम्हें,
बारिशों में कभी भीगोगे तो याद आऊँगा.
आज तो अपने दोस्तों की दोस्ती पर हो मगरूर बहुत,
जब कभी टूट के बिखरोंगे तो याद आऊँगा.
********तेरे नाम********यही तो है