तुम फ़िर भी......

Friday, February 20, 2009 ·


**************जानवर**************
कहा था ना इस तरह सोते हुए छोड़ कर मत जाना
मुझे बेशक जगा देना,
बता देते मुहब्बत के सफ़र मे साथ मेरे चल नहीं सकते,
जुदाई के सफर में साथ मेरे चल नहीं सकते,
तुम्हें रास्ता बदलना है मेरी हद से निकलना है,
तुम्हें किस बात का डर था,
तुम्हें जाने नहीं देता?
कहीं पर कैद कर लेता?
अरे पागल मुहबत की तबियत में जबरदस्ती नहीं होती,
जिसे रास्ता बदलना हो उसे रास्ता बदलने से
जिसे हद से निकलना हो,
उसे हद से निकलने से,
ना कोई रोक पया है,
ना कोई रोक पाएंगा.
तुम्हें किस बात का डर था?
मुझे बेशक जगा देते,
मैं तुमकों देख ही लेता,
तुम्हें कोई दुआ देता,
कम से कम युं तो ना होता,
मेरे साथ...! हकीकत है,
तुम्हारें बाद खोने के लिये कुछ भी नहीं बाकी,
मगर खोने से डरता हुँ,
मैं अब सोने से डरता हुँ॥
*********तेरे नाम****** यही तो है*******

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