वो भी एक वक्त था.....

Friday, February 20, 2009 ·

मैंने कहा था ना कि
मैं तुम्हारे ख्वाबों में आऊँगी,
इसी कारण सजने को- कल बाग में गई थी मैं, मेंहदी लाने।
निगोड़े काँटे, शायद दिल नहीं है उनमें, चुभ कर मुझमें, मुझे रोक रहे थे।
लेकिन तुमसे वादा किया था ना मैंने,
इसलिए बिना मेंहदी लिए मैं लौटती कैसे।
फिर कल शाम में मैं बड़ी बारीकी से मेंहदी को सिलवट पर पीसी।
हाँ, कुछ दर्द है हाथ में,
लेकिन क्या- कुछ नहीं।
एक बात कहूँ तुमसे,
शायद सिंदूरी आसमां को हमारे इकरार का पता था,
इसलिए कल रश्क से,
वह सूरज को लेकर पहले हीं चल दिया।
फिर तुम्हारे लिए,
बड़े प्यार से मैंने अपने हाथों पर मेंहदी रची ।
कल वक्त पर आई थी ना मैं,
तुम्हारे ख्वाबों में,
आखिर तुमसे वादा जो किया था मैंने।
एक और बात कहूँ,
कल से बहुत भूखी हूँ मैं,
हाथों में मेंहदी थी ना,
सो, कुछ खा नहीं पाई।
अभी सोने जा रही हूँ,
अब तुम मेरे ख्वाबों में आकर - मुझे कुछ खिला दो ना।

0 comments:

Post a Comment