हा फिर भी ऐसा ही हो..........

Saturday, July 25, 2009 · 1 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
फूल को छुने की खातिर कांटो से जख्मी होते है
जो झोली में आ गिरते थे उन्हें छुने से डर जाते है
जब बारिश बरसा करती थी...हम छतरी में छुप जाते थे
और जलती धुप में नंगे पांव हम छत पर उछला करते थे
जब पास वो होता था तो हम देख उस उसको ना सकते थे
जब दुर चला जाता था वो....हम आहट उसकी सुनते थे
जब सारी दुनियाँ सोती थी हम चाँद से खेला करते थे
जब सारी दुनियाँ उठ जाती हम थक कर सो जाते
हम कितने पागल होते थे.....हम कैसे पागल होते थे
हम आज भी वैसे ही पागल है.......
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*


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वो मुझसे मेरे इश्क का हिसाब मांग रहा है!!!!!
कितना पागल है........मुझसे मेरे जिन्दा रहने की वजह मांग रहा है......
वो मुझसे मेरी चाहत का सबुत मांग रहा है!!!!
कितना पागल है..........मुझसे मेरे वजुद का ही हिसाब मांग रहा है......
*********************************************** गोविन्द K.