जिस को देखूं साथ तुम्हारे , मुझ को राधा दिखती है,
दूर कहीं इक मीरा बैठी, गीत तुम्हारे लिखती है।
तुम को सोचा करती है, आँखों में पानी भरती है,
उस पानी से लिखती है, लिख के ख़ुद ही पढ़ती है।
यूँ ही पूजा करते करते, कितने ही युग बीत गाये,
आँखें बंद किए आँखों से, कितने जीवन रीत गाये।
आँखें खोले इस जीवन में, पलकों में तुम को भरना है,
जिस दिल से पूजा उस दिल से, प्यार तुम्हे अब करना है।
आडा तिरछा भाग्य युगों से, तुम सीधा साधा कर दो,
बाहों में भर लो तुम कान्हा, मीरा को राधा कर दो,
बाहों में भर लो तुम कान्हा, मीरा को राधा कर दो॥