*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*जमीन थी मेरी......मगर आसमां उसका का थाइसी लिये मुझे खुद पर........ गुमान उसका थामैं अब जो धुप में जलता हुं......उसी का है करममैं जिसकी छांव में था.......वो पेड़ का थावो जिसके वास्ते लड़ता रहता था मैं सबसेमेरे खिलाफ़ ही..............हर एक बयान उसका थावो जिसने मुझ को हमेशा डाला मुश्किल मेंये पहली बार था..........की इम्तिहान उसका थातुम मेरी जान हो........ यह भी उसी का कहना थातुम जख्म-ए-जान हो........यह भी बयान उसका थाजो रोशनी के लिये तरसता था..........शहर भर मेंतमाम शहर से..........रोशन मकान उसका था*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*************************************इससे ज्यादा दु: ख की “काका" और क्या मिसाल दुं,वो मुझसे लिपट कर रोये किसी ओर के लिये॥*****************************गोविन्द K.