जब भी तुम्हारी याद.......

Monday, March 30, 2009 · 2 comments

~*~*~*~*~*~जानवर~*~*~*~*~*~
ऎ बेवफा जिन्दगी क्यों मुझसे दगा करती हो?
जो भी बना अपना, उसे पराया करती हो,
चाहा जो मुस्कुराना तो आँखे भीगोती हो.
अब यहाँ कोई नहीं, क्यों इन्तजार करवाती हो?
कौन है यहाँ जो सुलझाये उलझी जुल्फ़ें,
क्यों टूटे दिलों को युं जलाती हो?
अगर गम-ए-दर्द का ही समुन्दर हो तो,
क्यों चाहत का मीठा दर्द जगाती हो?
शाम ढले जो पागल दिल सोना चाहे,
क्यों मुझे रुलाने चली आती हो?
जिन्दगी क्यों मुझसे दगा करती हो?????
*~*~*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~यही तो है

तुम ही तो थे.........

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~*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*~*
तुम क्या जानों यादों में खो कर आँखें कितना रोती है,
दिल में अपने दर्द समा कर आँखें कितना रोती है,
तुम क्या जानों सावन का मौसम कितनी आग लगाता है,
बारिश कि बुदों को छुकर आँखें कितना रोती है,
अब तो छोटी सी बात पर भी यह दिल भर सा जाता है,
हल्की सी दिल को लगती है ठोकर आँखें कितना रोती है,
अब तो यह जीना भी हम को कोई बोझ सा लगता है,
दिन भर उस बात को याद कर आँखें कितना रोती है,
जख्म-जख्म है आँखें मेरी माज़ी की परछाई से,
अपने अन्दर लहू डूबों कर आँखें कितना रोती है,
तुम एक दुनियाँ नई गये हो तुम को क्या एहसास,
इन राहों में तन्हा सी हो कर आँखें कितना रोती है..
*~*~*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~*~*~*यही तो है.