तुम्हें मैं याद आती हुँ?

Wednesday, July 1, 2009 · 4 comments

*~*~*~*जानवर*~*~*~*
अजब पागल सी लड़की है,
मुझे हर खत में लिखती है
“मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हें मैं याद आती हूँ?"

मेरी बातें सताती है,
मेरी नींदें जगाती है,
मेरी आँखे रुलाती है,
दिसम्बर की सुनहरी धूप में अब भी टहलते हो?
किसी खामोश रास्ते से
कोई आवाज आती है?
थरथराती सर्द रातों में
तुम अब भी छत पर जाते हो?
फलक के सब सितारों को
मेरी बातें सुनाते हो?
किताबों से तुम्हारे इश्क में कोई कमी आई?
या मेरी याद की वजह से आँखों में नमी है?
अजब पागल सी लड़की है,
मुझे हर खत में लिखती.
जवाब उस को लिखता हुँ..
मेरी व्यस्तता देखो सुबह से शाम ऑफिस में रहता हुँ
फिर उस के बाद दुनियाँ की,
कई मजबूरीयाँ पांव में बेड़ी डाले रखती है,
मुझे खाली समय, चाहत से भरे सपने नहीं दिखते,
टहलने, जागने, रोने की मोहलत ही नहीं मिलती.
सितारों से मिले अरसा हुआ..नाराज हो शायद!!!!
किताबों से मेरा प्यार अभी वैसा ही है...
फर्क इतना पड़ा है, अब उन्हें अरसे में पढ़ता हुँ.
तुम्हें किसने कहा पगली की “मैं तुम्हें याद करता हुँ!"
मैं तो खुद को भुलने की कोशिश में लगा रहता हुँ!
तुम्हें ना याद आने की कोशिश में लगा रहता हुँ!
मगर यह कोशिश मेरी बहुत नाकाम रहती है.
मेरे दिन-रात में अब भी तुम्हारी शाम रहती है,
मेरे लफ्जों कि हर माला “तेरे नाम" रहती है.
तुम्हें किसने कहा पगली की “मैं तुम्हें याद करता हुँ!"
पुरानी बात है जो लोग अक्सर गुनगुनाते है,
‘हम याद उन्हें करते है, जिन्हें हम भुल जाते है’
अजब पागल सी लड़की हो,
मेरी व्यस्तता देखो
तुम्हें दिल से भुलाऊं!, तुम्हारी याद ना आये!
तुम्हें दिल से भुलाने की मुझे फुरसत नहीं मिलती,
और इस व्यस्त जीवन में
तुम्हारे खत का एक जुमला
“तुम्हें मैं याद आती हुँ?"
मेरी चाहत कि शिद्दत में कमी होने नहीं देता,
बहुत रातें जागता है, मुझे सोने नहीं देता,
इसलिये अगली बार अपने खत में यह मत लिखना.
अजब पागल सी लड़की है, मुझे फिर भी यह लिखती है.....
मुझे तुम याद करते हो, तुम्हें मैं याद आती हुँ.
*~*~*~*तेर नाम *~*~*~*यही तो है*~*~*~*