*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~**~*~*~*धुंआ बना कर फिज़ा में उड़ा दिया मुझको,मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको.खड़ा हुं आज भी रोटी के चार टुकड़ों के लिये,सवाल यह है किताबों ने क्या दिया मुझको???सफैद रंग कि चादर लपैट कर मुझ पर,बिजुका की तरह खैत पर किस ने सजा दिया मुझको?मैं एक जरा बुलन्दी को छुने निकल था,हवा ने थाम कर, जमीन पर गिरा दिया मुझको..*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~*~*यही तो है.