कुछ तो है…….

Saturday, January 24, 2009 ·

*************जानवर****************
कोई एक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है,
हजारों ख्वाब आंखो में सजा कर कुछ नहीं मिलता.
उसे कहना कि पलकों पर ना टांके ख्वाब के झालर,
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता.
यह अच्छा है कि आपस के भ्रम ना टुट पायें,
कभी भी दोस्तों को आजमा कर कुछ नहीं मिलता.
फकत तुम से ही करता हूँ मैं सारे राज की बातें,
हर एक को दास्तां-ए-दिल सुना कर कुछ नहीं मिलता.
अम्ल के सुखते रंग में जरा सा खुन शामिल कर,
मेरे हम-दम फकत बातें बना कर कुछ नहीं मिलता.
************तेरे नाम***********यही तो है

4 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...
January 24, 2009 at 6:49 PM  

उसे कहना कि पलकों पर ना टांके ख्वाब के झालर,
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता.


भई वाह बेहतरीन रचना है आपकी काका

दिगम्बर नासवा said...
January 25, 2009 at 1:25 PM  

उसे कहना कि पलकों पर ना टांके ख्वाब के झालर,समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता
बहुत सुंदर कहाहाई गोविन्द जी
स्वागत है आप का

योगेन्द्र मौदगिल said...
January 25, 2009 at 5:20 PM  

बधाई.. भाई बेहतर कविता के लिये.....

Akanksha Yadav said...
January 25, 2009 at 9:27 PM  

आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!

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