***********जानवर************
तुम मेरी आंख के तेवर ना भुला पाओगे,
अनकही बात को समझोगे तो याद आऊँगा.
इसी अन्दाज में होते थे मुखातिब मुझसे,
खत किसी और को लिखोगे तो याद आऊँगा.
सर्द रातों के महकते हुए सन्नाटों में,
जब किसी फूल को चुमोगे तो याद आऊँगा.
अब तेरे अश्क में होठों से छुड़ा लेता हुँ,
हाथ से खुद इन्हें पोछोगे तो याद आऊँगा.
शॉल पहनाएगा अब कौन दिसम्बर में तुम्हें,
बारिशों में कभी भीगोगे तो याद आऊँगा.
आज तो अपने दोस्तों की दोस्ती पर हो मगरूर बहुत,
जब कभी टूट के बिखरोंगे तो याद आऊँगा.
********तेरे नाम********यही तो है
तुम भी कैसे.........
Saturday, January 24, 2009
by
गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी
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