*********जानवर*********
तुम्हारा इश्क तुम्हारी वफा ही काफ़ी है,
तमाम उम्र यह आसरा ही काफ़ी है ...
जहां कहीं भी मिलो, मिल के मुस्कुरा देना,
"खुशी" के लिये यह सिलसिला ही काफ़ी है ..
मुझे बहार के मौसम से नहीं कुछ लेना,
तुम्हारे प्यार की रंगीन फ़िज़ा ही काफ़ी है ..
ये लोग कौन सी मन्ज़िल की बात करते है?
मुसाफ़िरों के लिये तो रास्ता ही काफ़ी है.
********तेरे नाम********यही तो है
तुम्हारा इश्क तुम्हारी वफा ही काफ़ी है,
तमाम उम्र यह आसरा ही काफ़ी है ...
जहां कहीं भी मिलो, मिल के मुस्कुरा देना,
"खुशी" के लिये यह सिलसिला ही काफ़ी है ..
मुझे बहार के मौसम से नहीं कुछ लेना,
तुम्हारे प्यार की रंगीन फ़िज़ा ही काफ़ी है ..
ये लोग कौन सी मन्ज़िल की बात करते है?
मुसाफ़िरों के लिये तो रास्ता ही काफ़ी है.
********तेरे नाम********यही तो है
3 comments:
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन बहुत अच्छा लिखते हैं जी
सुन्दर ...कविता है.
स्वागत
बहुत-बहुत शुक्रियां आपकी अमुल्य प्रतिक्रियां के लिये।
धन्यवाद
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