आंखों का रंग, बात का लहजा बदल गया,
वो शख्स एक शाम में कितना बदल गया.
कुछ दिन तो मेरा अक्स रहा,
फिर युं हुआ कि खुद मेरा चेहरा बदल गया.
जब अपने-अपने हाल पर हम-तुम ना रह सके,
तो क्या हुआ जो हम से जमाना बदल गया.
कदमों तले जो रेत बिछी थी वो चल पड़ी,
उस ने छुड़ाया हाथ तो सहरा बदल गया.
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं रही,
जाते ही एक शख्स के क्या-क्या बदल गया.
उठ कर चला गया कोई वाकये के दरमियान,
परदा उठा तो सारा तमाशा बदल गया.
हैरत से सारे लफ्ज़ उसे देखते रहे,
बातों में अपनी बात को कैसे बदल गया.
कहने को एक सेहन में दीवार ही बनी,
घर की फ़िज़ा मकान का नक्शा ही बदल गया.
शायद वफ़ा के खेल में उकता गया था वो,
मंज़िल के पास आकर जो रास्ता ही बदल गया.
“काका" किसी भी हाल पर दुनियाँ नहीं रही,
ताबीर खो गई कभी सपना बदल गया.
मंजर का रंग असल में साया था रंग का,
जिस ने उसे जिधर से भी देखा बदल गया.
अन्दर के मोसमों की खबर उस को हो गयी,
उसने बहार-ए-नाज़ का चेहरा बदल दिया.
आखों में जितने अश्क थे जुगनू से बन गये,
वो मुस्कुराया और मेरी दुनियाँ बदल गया.
अपनी गली में अपना ही घर ढूंढते है लोग,
“गोविन्द" यह कोन शहर का नक्शा बदल गया.
वो मेरा था…….मेरा ही है।
Thursday, January 22, 2009
by
गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी
·
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8 comments:
अच्छी रचना. स्वागत ब्लॉग परिवार और मेरे ब्लॉग पर भी.
जब अपने-अपने हाल पर हम-तुम ना रह सके, तो क्या हुआ जो हम से जमाना बदल गया
सुंदर व सशक्त रचना
सार्थक लेखन !
शुभकामनाएं।
[भाई इस वर्ड वैरिफिकेशन की प्रक्रिया को
हटा दें, इससे प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक
परेशानी होती है !]
क्या बात है !
मैं जुस्तजू-ए-यार के इतना बिखर गया !
के ख़ुद को समेटने में ज़माना गुज़र गया !!
सुन्दर रचना है लिखते रहें। वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी करने में लोगों को आसानी रहे। जितनी भी टिप्पणियाँ आएँ, उन सबकी तस्वीरों पर क्लिक करके उन ब्ला॓गरों के प्रोफ़ाइल में जावें और उनके वेब पेज में जाकर उन्हें पढ़ने के बाद, पोस्ट अ कमेण्ट या टिप्पणी करें पर डबल क्लिक करके टिप्पणी करें। नेट से बारहा फ़ोण्ट डाउनलोड करके उसे हिन्दी में सक्रिय करके टिप्पणियाँ करें। नए ब्लागर्स की सुविधा के लिए :-
www.lal-n-bavaal.blogspot.com के सौजन्य से। धन्यवाद।
कदमों तले जो रेत बिछी थी वो चल पड़ी,
उस ने छुड़ाया हाथ तो सहरा बदल गया.
बहुत बढिया। रचना
हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे ।अच्छा लिखे। हजारों शुभकामनांए।
बधाई
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं रही,
जाते ही एक शख्स के क्या-क्या बदल गया.
खूबसूरत रचना ..............सुंदर तरीके से जज़्बात पिरोये हैं आपने
स्वागत है
आप सब महानुभाओं का दिल से शुक्रियां अदा करता हुं, कि आपने अपना अमुल्य समय देकर मेरी रचना पढी और अपनी प्रतिक्रियां दी। मैं आपकी हर आशा पर खरा उतरने का सम्पुर्ण प्रयास करुंगा।
आशा है आपके आशीर्वाद का हाथ युहीं मेरे पर बना रहेगा।
आपका-
गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी, उदयपुर राजस्थान
pls visit my webpage n send u r valuable comment
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आज आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है की आपके शब्दों को नए रूप, नए अर्थ और व्यापक दृष्टि मिले जिससे वे जन-सरोकारों की सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकें.....
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें.
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर.
हैरत से सारे लफ्ज़ उसे देखते रहे,
बातों में अपनी बात को कैसे बदल गया.
bahut sundar.bahut badhiya.
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