तुम ही तो थे.........

Monday, March 30, 2009 ·

~*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*~*
तुम क्या जानों यादों में खो कर आँखें कितना रोती है,
दिल में अपने दर्द समा कर आँखें कितना रोती है,
तुम क्या जानों सावन का मौसम कितनी आग लगाता है,
बारिश कि बुदों को छुकर आँखें कितना रोती है,
अब तो छोटी सी बात पर भी यह दिल भर सा जाता है,
हल्की सी दिल को लगती है ठोकर आँखें कितना रोती है,
अब तो यह जीना भी हम को कोई बोझ सा लगता है,
दिन भर उस बात को याद कर आँखें कितना रोती है,
जख्म-जख्म है आँखें मेरी माज़ी की परछाई से,
अपने अन्दर लहू डूबों कर आँखें कितना रोती है,
तुम एक दुनियाँ नई गये हो तुम को क्या एहसास,
इन राहों में तन्हा सी हो कर आँखें कितना रोती है..
*~*~*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~*~*~*यही तो है.

2 comments:

शोभा said...
March 30, 2009 at 3:36 PM  

बहुत सुन्दर लिखा है।

रंजू भाटिया said...
March 30, 2009 at 5:20 PM  

sundar lagi aapki yah kavita

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