इसीलिये तो........

Tuesday, July 21, 2009 ·

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
जमीन थी मेरी......मगर आसमां उसका का था
इसी लिये मुझे खुद पर........ गुमान उसका था
मैं अब जो धुप में जलता हुं......उसी का है करम
मैं जिसकी छांव में था.......वो पेड़ का था
वो जिसके वास्ते लड़ता रहता था मैं सबसे
मेरे खिलाफ़ ही..............हर एक बयान उसका था
वो जिसने मुझ को हमेशा डाला मुश्किल में
ये पहली बार था..........की इम्तिहान उसका था
तुम मेरी जान हो........ यह भी उसी का कहना था
तुम जख्म-ए-जान हो........यह भी बयान उसका था
जो रोशनी के लिये तरसता था..........शहर भर में
तमाम शहर से..........रोशन मकान उसका था
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*

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इससे ज्यादा दु: ख की “काका" और क्या मिसाल दुं,
वो मुझसे लिपट कर रोये किसी ओर के लिये॥
*****************************गोविन्द K.

2 comments:

ओम आर्य said...
July 21, 2009 at 9:29 PM  

बहुत ही अच्छी रचना ......जिसमे भाव बडी ही सहजता से कविता को खुब्सूरती प्रदान करी है ..........बधाई

Udan Tashtari said...
July 21, 2009 at 9:51 PM  

इससे ज्यादा दु: ख की “काका" और क्या मिसाल दुं,
वो मुझसे लिपट कर रोये किसी ओर के लिये॥


--कलेजा चाक हो गया होगा!! हाय!

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