<<<<<गोविन्द K.>>>>>>

Wednesday, October 7, 2009 ·

*~*~*जानवर*~*~*~*
चलो फिर ख्वाब देखते है
दिल कि ज़मीन में उम्मीद के
कुछ बीज बोते है
बे मन्ज़िल सफर में
गुबार से अटे चेहरे को धोते है
चलो हम फिर से कोई ख्वाब देखते है
गुलशन-ए-दिल में
नये मौसम उगाते है
किनारों की ख्वाहिश में
भीगे बदन को फिर से सुखाते है
फिर कोयलों की बोली में
कुछ गीत सुहाने लिखते है
कुछ शेर पुराने लिखते है
कुछ नये अफसाने लिखते है
दिल की ख्वाहिश का
फिर से एहतेराम करते है
चलो यह काम करते है
कोइ ख्वाब देखते है
फिर से गीली रेत पर
सपनों के महल बनाते है
उन महलों की छतों पर
फिर कोयलों को सुनते है
बिखरी हुई खाक से
हम फिर मोती मिलन के चुनते है
और बिखरी माला पिरोते है
चलो फिर ख्वाब देखते है
चलो नये ख्वाब देखते है
*~*~*तेरे नाम *~*~*यही तो है~*~*

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