तु जो नहीं..........कुछ भी नहीं

Monday, July 27, 2009 ·



*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
अगर गुफ्तगु का आगाज में करता
झिझकती, बिगड़ती मगर मान जाती
जो मैं बढ़ कर उसके कदम रोक लेता
वो पांव पटकती मगर मान जाती
अगर चंद कलियाँ उसे पैश करता
वो दामन झटकती मगर मान जाती
मैं कहता ‘चलों तुम को घुमा कर लाता हुँ’
अकड़ती, झिझकती मगर मान जाती
जो मैं उसको तकता.....ज़मीन को वो तकती
अंगुठा रगड़ती मगर मान जाती
जो पीछे से आँचल का फंदा बनाता
बहुत तिलमिलाती मगर मान जाती
वो गुस्से में जो मुझ नाराज होती
बिखरती, तड़फती मगर मान जाती
जो कहता की ‘ राहों पर चलिये संभलकर’
उछलती, मटकती मगर मान जाती
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*
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तुझसे तो कोई गिला नहीं है, किस्मत में मेरी सिला नहीं है
"खुशबू" का सौदा हो चुका है ओर फुल अभी खिला नहीं है.
****************************************** गोविन्द K.

1 comments:

अनिल कान्त said...
July 27, 2009 at 9:12 PM  

बहुत अच्छा लिखा है आपने ...बहुत अच्छा

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