Tuesday, July 28, 2009 · 0 comments


इस तरह तो किसी को........

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*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
टुटा हुआ शीशा फिर जोड़ा नहीं जाता
आँख से निकला हुआ आँसू फिर वापस नहीं आता
तुम तो कह कर भुल चुके हो सब कुछ
लेकिन मुझसे वो पल भुलाया नहीं जाता
तेरी मोहब्बत ने जंजीरे डाली है ऐसी
कि छुड़ाना भी चाहुँ तो छुड़ाया नहीं जाता
महफिल में भी मुझ को तन्हाईं नजर आती है
तेरे बिना ये दिल कहीं और लगाया नहीं जाता
मेरे दिल की दीवारों पर सिर्फ़ तेरा ही नाम लिखा है
मिटाना भी चाहुँ तो मिटाया नहीं जाता
सांस रुकने से पहले एक झलक दिखा जाना
बेवफा जिन्दगी का ऐतबार किया नहीं जाता
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*


***********************************************
मैं तुझे देख तो सकता हुं, मगर छु नहीं सकता,
तु झील में उतरे हुये मंजर की तरह है॥
************************************* गोविन्द K.

तु जो नहीं..........कुछ भी नहीं

Monday, July 27, 2009 · 1 comments



*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
अगर गुफ्तगु का आगाज में करता
झिझकती, बिगड़ती मगर मान जाती
जो मैं बढ़ कर उसके कदम रोक लेता
वो पांव पटकती मगर मान जाती
अगर चंद कलियाँ उसे पैश करता
वो दामन झटकती मगर मान जाती
मैं कहता ‘चलों तुम को घुमा कर लाता हुँ’
अकड़ती, झिझकती मगर मान जाती
जो मैं उसको तकता.....ज़मीन को वो तकती
अंगुठा रगड़ती मगर मान जाती
जो पीछे से आँचल का फंदा बनाता
बहुत तिलमिलाती मगर मान जाती
वो गुस्से में जो मुझ नाराज होती
बिखरती, तड़फती मगर मान जाती
जो कहता की ‘ राहों पर चलिये संभलकर’
उछलती, मटकती मगर मान जाती
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*
****************************************************
तुझसे तो कोई गिला नहीं है, किस्मत में मेरी सिला नहीं है
"खुशबू" का सौदा हो चुका है ओर फुल अभी खिला नहीं है.
****************************************** गोविन्द K.

हा फिर भी ऐसा ही हो..........

Saturday, July 25, 2009 · 1 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
फूल को छुने की खातिर कांटो से जख्मी होते है
जो झोली में आ गिरते थे उन्हें छुने से डर जाते है
जब बारिश बरसा करती थी...हम छतरी में छुप जाते थे
और जलती धुप में नंगे पांव हम छत पर उछला करते थे
जब पास वो होता था तो हम देख उस उसको ना सकते थे
जब दुर चला जाता था वो....हम आहट उसकी सुनते थे
जब सारी दुनियाँ सोती थी हम चाँद से खेला करते थे
जब सारी दुनियाँ उठ जाती हम थक कर सो जाते
हम कितने पागल होते थे.....हम कैसे पागल होते थे
हम आज भी वैसे ही पागल है.......
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*


******************************************************
वो मुझसे मेरे इश्क का हिसाब मांग रहा है!!!!!
कितना पागल है........मुझसे मेरे जिन्दा रहने की वजह मांग रहा है......
वो मुझसे मेरी चाहत का सबुत मांग रहा है!!!!
कितना पागल है..........मुझसे मेरे वजुद का ही हिसाब मांग रहा है......
*********************************************** गोविन्द K.

जब भी टुटेगा......

Thursday, July 23, 2009 · 5 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
रोना भी जो चाहें तो वो रोने नहीं देता,
वो शख्स तो पलकें भी भिगोने नहीं देता...
वो रोज रुलाता है हमें ख्वाब में आकर,
सोना भी जो चाहें तो वो सोने नहीं देता.....
ये किस के इशारे पर उमड़ आये है बादल,
है कौन जो बारिश कभी होने नहीं देता...
आता है ख्यालों में मेरे कौन ये अक्सर,
जो मुझे किसी ओर का होने नहीं देता....
इस डर से कि कहीं तोड़ कर आँसू ना बहायें,
बच्चों को मैं मिट्टी के खिलोने नहीं देता...
एक शख्स है ऐसा मेरी हस्ती में अभी तक,
जो बोझ अकेले मुझे ढोने नहीं देता...
मैं हुँ कि बहाता हुं तेरी याद में आँसू,
और तु है कि अश्कों को पिरोने नहीं देता....
वो चेहरा अजब है जिसे पाकर मैं अभी तक,
खोना भी जो चाहुँ तो वो खोने नहीं देता...
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*

इसीलिये तो........

Tuesday, July 21, 2009 · 2 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
जमीन थी मेरी......मगर आसमां उसका का था
इसी लिये मुझे खुद पर........ गुमान उसका था
मैं अब जो धुप में जलता हुं......उसी का है करम
मैं जिसकी छांव में था.......वो पेड़ का था
वो जिसके वास्ते लड़ता रहता था मैं सबसे
मेरे खिलाफ़ ही..............हर एक बयान उसका था
वो जिसने मुझ को हमेशा डाला मुश्किल में
ये पहली बार था..........की इम्तिहान उसका था
तुम मेरी जान हो........ यह भी उसी का कहना था
तुम जख्म-ए-जान हो........यह भी बयान उसका था
जो रोशनी के लिये तरसता था..........शहर भर में
तमाम शहर से..........रोशन मकान उसका था
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*

************************************
इससे ज्यादा दु: ख की “काका" और क्या मिसाल दुं,
वो मुझसे लिपट कर रोये किसी ओर के लिये॥
*****************************गोविन्द K.

Wednesday, July 15, 2009 · 3 comments


*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
जब तेरी याद में यह दिल मचल जाता है
आँख बन्द करता हूं और अश्क निकल जाता है
तेरी तस्वीर को सीने से लगा कर जब मैं
खुब रो लेता हुँ तो दिल बहल जाता है
मेरे जिस हाथ ने थामा था कभी तेरा हाथ
दिल पर वो हाथ रखुं, दिल संभल जाता है
तेरी “खुशबु" की महक है मेरे घर में अब तक
कोई गम भी यहां आ जाये तो टल जाता है
कितना बेबस है वो इंसान जिसे मोहब्ब्त में
प्यार मिलता नहीं और वक्त बदल जाता है
वक्त-ए-रुखसत मेरी आंखों ने किया था जो सवाल
अब दुआ बन कर मेरे अश्क में ढल जाता है
आज जलता है यह सीना तो इसे जल जाने दो
चांद देखे बिना सुरज भी तो ढल जाता है
इश्क करना बहुत आसान था लेकिन अब दिल
इश्क का नाम भी सुन ले तो दहल जाता है
शायर मैं था तो नहीं पर तुम्हारी चाहत में
अब तो हर अश्क से एक शैर निकल जाता है
आखिरी वक्त में जब लौट के आये वो
आंख हंसती रही और दम निकल जाता है
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*

तुम्हें मैं याद आती हुँ?

Wednesday, July 1, 2009 · 4 comments

*~*~*~*जानवर*~*~*~*
अजब पागल सी लड़की है,
मुझे हर खत में लिखती है
“मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हें मैं याद आती हूँ?"

मेरी बातें सताती है,
मेरी नींदें जगाती है,
मेरी आँखे रुलाती है,
दिसम्बर की सुनहरी धूप में अब भी टहलते हो?
किसी खामोश रास्ते से
कोई आवाज आती है?
थरथराती सर्द रातों में
तुम अब भी छत पर जाते हो?
फलक के सब सितारों को
मेरी बातें सुनाते हो?
किताबों से तुम्हारे इश्क में कोई कमी आई?
या मेरी याद की वजह से आँखों में नमी है?
अजब पागल सी लड़की है,
मुझे हर खत में लिखती.
जवाब उस को लिखता हुँ..
मेरी व्यस्तता देखो सुबह से शाम ऑफिस में रहता हुँ
फिर उस के बाद दुनियाँ की,
कई मजबूरीयाँ पांव में बेड़ी डाले रखती है,
मुझे खाली समय, चाहत से भरे सपने नहीं दिखते,
टहलने, जागने, रोने की मोहलत ही नहीं मिलती.
सितारों से मिले अरसा हुआ..नाराज हो शायद!!!!
किताबों से मेरा प्यार अभी वैसा ही है...
फर्क इतना पड़ा है, अब उन्हें अरसे में पढ़ता हुँ.
तुम्हें किसने कहा पगली की “मैं तुम्हें याद करता हुँ!"
मैं तो खुद को भुलने की कोशिश में लगा रहता हुँ!
तुम्हें ना याद आने की कोशिश में लगा रहता हुँ!
मगर यह कोशिश मेरी बहुत नाकाम रहती है.
मेरे दिन-रात में अब भी तुम्हारी शाम रहती है,
मेरे लफ्जों कि हर माला “तेरे नाम" रहती है.
तुम्हें किसने कहा पगली की “मैं तुम्हें याद करता हुँ!"
पुरानी बात है जो लोग अक्सर गुनगुनाते है,
‘हम याद उन्हें करते है, जिन्हें हम भुल जाते है’
अजब पागल सी लड़की हो,
मेरी व्यस्तता देखो
तुम्हें दिल से भुलाऊं!, तुम्हारी याद ना आये!
तुम्हें दिल से भुलाने की मुझे फुरसत नहीं मिलती,
और इस व्यस्त जीवन में
तुम्हारे खत का एक जुमला
“तुम्हें मैं याद आती हुँ?"
मेरी चाहत कि शिद्दत में कमी होने नहीं देता,
बहुत रातें जागता है, मुझे सोने नहीं देता,
इसलिये अगली बार अपने खत में यह मत लिखना.
अजब पागल सी लड़की है, मुझे फिर भी यह लिखती है.....
मुझे तुम याद करते हो, तुम्हें मैं याद आती हुँ.
*~*~*~*तेर नाम *~*~*~*यही तो है*~*~*~*