कोई तो बात है......

Monday, May 18, 2009 ·

*~*~*~*~*~*~* जानवर *~*~*~*~*~*~*
गमों की जमीन पर कोई “खुशी" का मचान नहीं है,
क्या हुं? कौन हुं मैं? मुझे अपनी पहचान नहीं है,
काश!!! उड़ पाता कहीं ऊँचे अपने यह पँख फ़ैला कर,
अफ़सोस!!! मेरे मुकद्दर में कहीं आसमां नहीं है,

भीड़ में रह कर भी रहा हुँ सदा तन्हा मैं,
मेरे लिये किसी भी राह में कोई कारवाँ नहीं है,
गम छुपाने की हर अदा मालुम है मुझको,
देखो मेरी हँसी में कोई भी गम का निशां नहीं है,
अब तो हर सुबह गुजरेगी ऐसे ही आपस में गले मिल कर,
अब तो कोई भी मेरे और गम के दरमियां नहीं है,
इस दुनियाँ में सभी जीते है, कुछ आरजू ले कर,
अपना दिल है पत्थर का इसका कोई अरमां नहीं है..
*~*~*~*~*~*~* तेरे नाम*~*~*~*~* यही तो है *~*~*

3 comments:

PREETI BARTHWAL said...
May 18, 2009 at 4:31 PM  

गोविन्द जी बहुत ही बढ‍िया लिखा है बस पढ़ने के बाद एक ही शब्द जुबां पर आया....वाह क्या बात है.....

रंजना said...
May 18, 2009 at 5:22 PM  

पीडा को बहुत ही प्रभावी ढंग से आपने मुखर अभिव्यक्ति दी है...

बहुत सुन्दर रचना....

Unknown said...
September 17, 2018 at 9:27 AM  

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,, दिल के भीतर तक स्पर्श कर गई

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