जब भी तुम्हारी याद.......
Monday, March 30, 2009
by
गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी
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"सिर्फ मैं",
तेरे नाम
तुम ही तो थे.........
~*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*~*
तुम क्या जानों यादों में खो कर आँखें कितना रोती है,
दिल में अपने दर्द समा कर आँखें कितना रोती है,
तुम क्या जानों सावन का मौसम कितनी आग लगाता है,
बारिश कि बुदों को छुकर आँखें कितना रोती है,
अब तो छोटी सी बात पर भी यह दिल भर सा जाता है,
हल्की सी दिल को लगती है ठोकर आँखें कितना रोती है,
अब तो यह जीना भी हम को कोई बोझ सा लगता है,
दिन भर उस बात को याद कर आँखें कितना रोती है,
जख्म-जख्म है आँखें मेरी माज़ी की परछाई से,
अपने अन्दर लहू डूबों कर आँखें कितना रोती है,
तुम एक दुनियाँ नई गये हो तुम को क्या एहसास,
इन राहों में तन्हा सी हो कर आँखें कितना रोती है..
*~*~*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~*~*~*यही तो है.
वो महाराणा प्रताप कठे?
Monday, March 2, 2009
by
गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी
·
8
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कवि माधव दरक,
महाराणा प्रताप
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वों महाराणा प्रताप कठे?
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हळदीघाटी में समर में लड़यो, वो चेतक रो असवार कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?, वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?, वो महाराणा प्रताप कठे?
मैं बाचों है इतिहासां में, मायड़ थे एड़ा पुत जण्या,
अन-बान लजायो नी थारो, रणधीरा वी सरदार बण्या,
बेरीया रा वरसु बादिळा सारा पड ग्या ऊण रे आगे,
वो झुक्यो नही नर नाहरियो, हिन्दवा सुरज मेवाड़ रतन
वो महाराणा प्रताप कठे? मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
ये माटी हळदीघाटी री लागे केसर और चंदन है,
माथा पर तिलक करो इण रो इण माटी ने निज वंदन है.
या रणभूमि तीरथ भूमि, दर्शन करवा मन ललचावे.
उण वीर-सुरमा री यादा हिवड़ा में जोश जगा जावे.
उण स्वामी भक्त चेतक री टापा, टप-टप री आवाज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
संकट रा दन देख्या जतरा, वे आज कुण देख पावेला,
राणा रा बेटा-बेटी न, रोटी घास री खावेला
ले संकट ने वरदान समझ, वो आजादी को रखवारो,
मेवाड़ भौम री पति राखण ने, कदै भले झुकवारो,
चरणा में धन रो ढेर कियो, दानी भामाशाह आज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
भाई शक्ति बेरिया सूं मिल, भाई सूं लड़वा ने आयो,
राणा रो भायड़ प्रेम देख, शक्ति सिंग भी हे शरमायों,
औ नीला घोड़ा रा असवार, थे रुक जावो-थे रुक जावो
चरणा में आई प़डियो शक्ति, बोल्यो मैं होकर पछतायो.
वो गळे मिल्या भाई-भाई, जूं राम-भरत रो मिलन अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?, वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वट-वृक्ष पुराणॊं बोल्यो यो, सुण लो जावा वारा भाई
राणा रा किमज धरया तन पे, झाला मन्ना री नरवारी
भाळो राणा रो काहे चमक्यो, आँखां में बिजली कड़काई,
ई रगत-खळगता नाळा सूं, या धरती रगत री कहळाई
यो दरश देख अभिमानी रो जगती में अस्यों मनख कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
हळदीघाटी रे किला सूं शिव-पार्वती रण देख रिया
मेवाड़ी वीरा री ताकत, अपनी निजरिया में तौल रिया.
बोल्या शिवजी-सुण पार्वती मेवाड़ भौम री बलिहारी
जो आछा करम करे जग में, वो अठे जनम ले नर-नारी.
मूं श्याम एकलिंग रूप धरी सदियां सूं बैठो भला अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
मानवता रो धरम निभायो है, भैदभाव नी जाण्यो है
सेनानायक सूरी हकीम यू राणा रो ……….चुकायो हे
अरे जात-पात और ऊंच-नीच री बात अया ने नी भायी ही
अणी वास्ते राणा री प्रभुता जग ने दरशाई ही
वो सम्प्रदाय सदभाव री मिले है मिसाल आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
कुम्भलगढ़, गोगुन्दा, चावण्ड, हळदीघाटी ओर कोल्यारी
मेवाड़ भौम रा तीरथ है, राणा प्रताप री बलिहारी,
हे हरिद्वार, काशी, मथुरा, पुष्कर, गलता में स्नान करा,
सब तीरथा रा फल मिल जावे मेवाड़ भौम में जद विचरां.
कवि “माधव" नमन करे शत-शत, मोती मगरी पर आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
अरे आज देश री सीमा पर संकट रा बादळ मंडराया,
ये पाकिस्तानी घुसपेठीया, भारत सीमा में घुस आया,
भारत रा वीर जवाना थे, याने यो सबक सिखा दिजो,
थे हो प्रताप रा ही वंशज, याने यो आज बता दिजो,
यो काशमीर भारत रो है, कुण आज आंख दिखावे आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
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कवि माधव दरक, कुम्भलगढ़, राजस्थान
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कवि माधव दरक द्वारा रचित एक अन्य गीत “माई एहड़ा पुत जण, जे रण प्रताप” को राजस्थान के राज गीत के रुप में गाया जाता है.वों महाराणा प्रताप कठे?
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हळदीघाटी में समर में लड़यो, वो चेतक रो असवार कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?, वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?, वो महाराणा प्रताप कठे?
मैं बाचों है इतिहासां में, मायड़ थे एड़ा पुत जण्या,
अन-बान लजायो नी थारो, रणधीरा वी सरदार बण्या,
बेरीया रा वरसु बादिळा सारा पड ग्या ऊण रे आगे,
वो झुक्यो नही नर नाहरियो, हिन्दवा सुरज मेवाड़ रतन
वो महाराणा प्रताप कठे? मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
ये माटी हळदीघाटी री लागे केसर और चंदन है,
माथा पर तिलक करो इण रो इण माटी ने निज वंदन है.
या रणभूमि तीरथ भूमि, दर्शन करवा मन ललचावे.
उण वीर-सुरमा री यादा हिवड़ा में जोश जगा जावे.
उण स्वामी भक्त चेतक री टापा, टप-टप री आवाज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
संकट रा दन देख्या जतरा, वे आज कुण देख पावेला,
राणा रा बेटा-बेटी न, रोटी घास री खावेला
ले संकट ने वरदान समझ, वो आजादी को रखवारो,
मेवाड़ भौम री पति राखण ने, कदै भले झुकवारो,
चरणा में धन रो ढेर कियो, दानी भामाशाह आज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
भाई शक्ति बेरिया सूं मिल, भाई सूं लड़वा ने आयो,
राणा रो भायड़ प्रेम देख, शक्ति सिंग भी हे शरमायों,
औ नीला घोड़ा रा असवार, थे रुक जावो-थे रुक जावो
चरणा में आई प़डियो शक्ति, बोल्यो मैं होकर पछतायो.
वो गळे मिल्या भाई-भाई, जूं राम-भरत रो मिलन अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?, वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वट-वृक्ष पुराणॊं बोल्यो यो, सुण लो जावा वारा भाई
राणा रा किमज धरया तन पे, झाला मन्ना री नरवारी
भाळो राणा रो काहे चमक्यो, आँखां में बिजली कड़काई,
ई रगत-खळगता नाळा सूं, या धरती रगत री कहळाई
यो दरश देख अभिमानी रो जगती में अस्यों मनख कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
हळदीघाटी रे किला सूं शिव-पार्वती रण देख रिया
मेवाड़ी वीरा री ताकत, अपनी निजरिया में तौल रिया.
बोल्या शिवजी-सुण पार्वती मेवाड़ भौम री बलिहारी
जो आछा करम करे जग में, वो अठे जनम ले नर-नारी.
मूं श्याम एकलिंग रूप धरी सदियां सूं बैठो भला अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
मानवता रो धरम निभायो है, भैदभाव नी जाण्यो है
सेनानायक सूरी हकीम यू राणा रो ……….चुकायो हे
अरे जात-पात और ऊंच-नीच री बात अया ने नी भायी ही
अणी वास्ते राणा री प्रभुता जग ने दरशाई ही
वो सम्प्रदाय सदभाव री मिले है मिसाल आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
कुम्भलगढ़, गोगुन्दा, चावण्ड, हळदीघाटी ओर कोल्यारी
मेवाड़ भौम रा तीरथ है, राणा प्रताप री बलिहारी,
हे हरिद्वार, काशी, मथुरा, पुष्कर, गलता में स्नान करा,
सब तीरथा रा फल मिल जावे मेवाड़ भौम में जद विचरां.
कवि “माधव" नमन करे शत-शत, मोती मगरी पर आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
अरे आज देश री सीमा पर संकट रा बादळ मंडराया,
ये पाकिस्तानी घुसपेठीया, भारत सीमा में घुस आया,
भारत रा वीर जवाना थे, याने यो सबक सिखा दिजो,
थे हो प्रताप रा ही वंशज, याने यो आज बता दिजो,
यो काशमीर भारत रो है, कुण आज आंख दिखावे आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
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कवि माधव दरक, कुम्भलगढ़, राजस्थान
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