सब कुछ……… “तेरे नाम” युहीं तो नहीं था……..

Wednesday, January 28, 2009 ·


************************जानवर**************************
वो कहती है कि क्या अब भी किसी के लिये लाल-हरी चुड़ीयाँ खरीदते हो?
मैं कहता हुँ अब किसी की कलाई पर यह रंग अच्छा नहीं लगता.
वो कहती है कि क्या अब भी किसी के आंचल को ‘आकाश’ लिखते हो?
मैं कहता हुँ अब किसी के आंचल में इतनी जगह कहाँ है?
वो कहती है कि क्या मेरे बाद किसी लड़की से मुहब्बत हुई है तुम्हे?
मैं कहता हुँ, मुहब्बत सिर्फ लड़की पर निर्भर नहीं होती.
वो कहती है कि जान! लहजे में बहुत उदासी सी है?
मैं कहता हुँ कि तितलियों ने भी मेरे दु:ख को महसुस किया है.
वो कहती है कि क्या अब भी मुझे बेवफा के नाम से याद करते हो?
मैं कहता हुँ कि "मेरी जिन्दगी" में यह लफ्ज़ शामिल ही नहीं.
वो कहती है कि कभी मेरे जिक्र पर रो भी लेते होऒगे?
मैं कहता हुँ कि मेरी आंखों को हर वक्त ही फुंआर अच्छी लगती है.
वो कहती है कि तुम्हारी बातों में इतनी गहराई क्यों है?
मैं कहता हुँ कि तेरी जुदाई का बाद मुझको यह ईनाम मिला है....
*******************तेरे नाम******************यही तो है 

1 comments:

Ashutosh said...
January 29, 2009 at 9:12 AM  

aapne acchi kavita likhi hai,aap aise hi acchi baate likhte rahe,aisi meri kaamna hai.

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