तेरे नाम……
***********जानवर************
पत्थर बना दिया मुझे रोने नहीं दिया,
दामन भी तेरे गम ने भिगोने नहीं दिया.
तन्हाईयाँ तुम्हारा पता पुछती रही,
रात भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया.
आंखों में आकर बैठ गयी आंसुओं की लहर,
पलकों पर कोई ख्वाब, पर रोने नहीं दिया.
दिल को तुम्हारे नाम के आंसू अजीज थे,
दुनियाँ का दर्द दिल में समाने नहीं दिया.
"काका" युहीं उसकी याद चली हाथ थाम कर,
मेले में इस जहां के खोने नहीं दिया..
********तेरे नाम********यही तो है
सब कुछ……… “तेरे नाम” युहीं तो नहीं था……..
************************जानवर**************************
वो कहती है कि क्या अब भी किसी के लिये लाल-हरी चुड़ीयाँ खरीदते हो?
मैं कहता हुँ अब किसी की कलाई पर यह रंग अच्छा नहीं लगता.
वो कहती है कि क्या अब भी किसी के आंचल को ‘आकाश’ लिखते हो?
मैं कहता हुँ अब किसी के आंचल में इतनी जगह कहाँ है?
वो कहती है कि क्या मेरे बाद किसी लड़की से मुहब्बत हुई है तुम्हे?
मैं कहता हुँ, मुहब्बत सिर्फ लड़की पर निर्भर नहीं होती.
वो कहती है कि जान! लहजे में बहुत उदासी सी है?
मैं कहता हुँ कि तितलियों ने भी मेरे दु:ख को महसुस किया है.
वो कहती है कि क्या अब भी मुझे बेवफा के नाम से याद करते हो?
मैं कहता हुँ कि "मेरी जिन्दगी" में यह लफ्ज़ शामिल ही नहीं.
वो कहती है कि कभी मेरे जिक्र पर रो भी लेते होऒगे?
मैं कहता हुँ कि मेरी आंखों को हर वक्त ही फुंआर अच्छी लगती है.
वो कहती है कि तुम्हारी बातों में इतनी गहराई क्यों है?
मैं कहता हुँ कि तेरी जुदाई का बाद मुझको यह ईनाम मिला है....
*******************तेरे नाम******************यही तो है
दर्द
कुछ तो है…….
*************जानवर****************
कोई एक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है,
हजारों ख्वाब आंखो में सजा कर कुछ नहीं मिलता.
उसे कहना कि पलकों पर ना टांके ख्वाब के झालर,
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता.
यह अच्छा है कि आपस के भ्रम ना टुट पायें,
कभी भी दोस्तों को आजमा कर कुछ नहीं मिलता.
फकत तुम से ही करता हूँ मैं सारे राज की बातें,
हर एक को दास्तां-ए-दिल सुना कर कुछ नहीं मिलता.
अम्ल के सुखते रंग में जरा सा खुन शामिल कर,
मेरे हम-दम फकत बातें बना कर कुछ नहीं मिलता.
************तेरे नाम***********यही तो है
तुम भी कैसे.........
***********जानवर************
तुम मेरी आंख के तेवर ना भुला पाओगे,
अनकही बात को समझोगे तो याद आऊँगा.
इसी अन्दाज में होते थे मुखातिब मुझसे,
खत किसी और को लिखोगे तो याद आऊँगा.
सर्द रातों के महकते हुए सन्नाटों में,
जब किसी फूल को चुमोगे तो याद आऊँगा.
अब तेरे अश्क में होठों से छुड़ा लेता हुँ,
हाथ से खुद इन्हें पोछोगे तो याद आऊँगा.
शॉल पहनाएगा अब कौन दिसम्बर में तुम्हें,
बारिशों में कभी भीगोगे तो याद आऊँगा.
आज तो अपने दोस्तों की दोस्ती पर हो मगरूर बहुत,
जब कभी टूट के बिखरोंगे तो याद आऊँगा.
********तेरे नाम********यही तो है
यार को मैंने
तुम्हारा इश्क तुम्हारी वफा ही काफ़ी है,
तमाम उम्र यह आसरा ही काफ़ी है ...
जहां कहीं भी मिलो, मिल के मुस्कुरा देना,
"खुशी" के लिये यह सिलसिला ही काफ़ी है ..
मुझे बहार के मौसम से नहीं कुछ लेना,
तुम्हारे प्यार की रंगीन फ़िज़ा ही काफ़ी है ..
ये लोग कौन सी मन्ज़िल की बात करते है?
मुसाफ़िरों के लिये तो रास्ता ही काफ़ी है.
********तेरे नाम********यही तो है
वो मेरा था…….मेरा ही है।
आंखों का रंग, बात का लहजा बदल गया,
वो शख्स एक शाम में कितना बदल गया.
कुछ दिन तो मेरा अक्स रहा,
फिर युं हुआ कि खुद मेरा चेहरा बदल गया.
जब अपने-अपने हाल पर हम-तुम ना रह सके,
तो क्या हुआ जो हम से जमाना बदल गया.
कदमों तले जो रेत बिछी थी वो चल पड़ी,
उस ने छुड़ाया हाथ तो सहरा बदल गया.
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं रही,
जाते ही एक शख्स के क्या-क्या बदल गया.
उठ कर चला गया कोई वाकये के दरमियान,
परदा उठा तो सारा तमाशा बदल गया.
हैरत से सारे लफ्ज़ उसे देखते रहे,
बातों में अपनी बात को कैसे बदल गया.
कहने को एक सेहन में दीवार ही बनी,
घर की फ़िज़ा मकान का नक्शा ही बदल गया.
शायद वफ़ा के खेल में उकता गया था वो,
मंज़िल के पास आकर जो रास्ता ही बदल गया.
“काका" किसी भी हाल पर दुनियाँ नहीं रही,
ताबीर खो गई कभी सपना बदल गया.
मंजर का रंग असल में साया था रंग का,
जिस ने उसे जिधर से भी देखा बदल गया.
अन्दर के मोसमों की खबर उस को हो गयी,
उसने बहार-ए-नाज़ का चेहरा बदल दिया.
आखों में जितने अश्क थे जुगनू से बन गये,
वो मुस्कुराया और मेरी दुनियाँ बदल गया.
अपनी गली में अपना ही घर ढूंढते है लोग,
“गोविन्द" यह कोन शहर का नक्शा बदल गया.
प्रेम कहानी_ढोला-मारु
एक समय की बात है. पूंगल देश का राजा पिंगल था और उन्हीं दिनों नरवर नगर पर राजा नल का शासन था. पिंगल की रानी ने एक अत्यंत सुंदर कन्या को जन्म दिया जिसे मारवणी नाम दिया गया. इधर नल की रानी दमयंती ने एक सुंदर पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम साल्ह कुँवर रखा गया. साल्ह कुँवर को प्यार से ढोला कहकर पुकारा जाता था. पूंगल में अकाल पड़ने के कारण राजा पिंगल को सपरिवार राजा नल के देश नरवर के लिये प्रस्थान किया. नरवर में पिंगल का राज्योचित मान-सम्मान किया गया. उन्हें आवास के अलावा कुछ सेवक और घोड़े भी दिये गये. इस प्रकार दोनों परिवारों की परस्पर भेंट हुई. बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. ढोला की माँ दमयंती मारवणी के रुप को देख कर मोहित हो गई, सो उसने अपने ढोला के साथ मारवणी के विवाह का प्रस्ताव रखा. गहरे विचार-विमर्श के बाद प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया. एक बड़े उत्सव के रुप में दोनों का विधिवत विवाह सम्पन्न हुआ.
सुकाल होने पर पिंगल पूंगल लौट आया. मारवणी भी उसके साथ लौट आई क्योंकि वह अभी सुकुमार बालिका ही थी. समय बीता. उम्र के साथ-साथ मारवणी के शरीर में तरुणाई फुटने लगी. ढोला उसे स्वप्न्न में दिखने लगा. सखियों ने मारवणी की विरह व्यथा स रानी को अवगत कराया. ढोला को लाने के लिये संदेसवाहक भेजे गये मगर कोई भी संदेशवाहक वापस नहीं लौटा.
इन्हीं दिनों घोड़ों का एक सौदागर पुंगल आया और उसने पिंगल से भेंट की. सौदागर ने ढोला से अपनी भेंट में उसकी दानवीरता और शौर्य के बारे में पिंगल को अवगत कराया. उसने पिंगल को यह भी बताया कि ढोला मालवगढ़ के राजा की सुंदर कन्या मालवाणी के प्रेम में अनुरक्त है, इतना ही नहीं ढोला को मारवणी का कोई संदेश ना मिले इसके लिये वह जो कोई भी पुंगल से आता है, मालवणी उसे मरवा देती है.
मंदिर जाते हुए मारवणी ने अपने सखियों से ढोला के ये चर्चे सुने और वो व्यथित हो उठी. मारु ने अपना प्रेम संदेश ढाढ़ियों के माध्यम से ढोला को भिजवाया जिसमें अपने विरह की संपुर्ण वेदना बयान कर दी थी.
रात्रि के समय ढाढ़ियों ने मल्हार राग में मारु का संदेश गा-गाकर सुनाया. संदेश सुन ढोला व्यग्र हो उठा. सवेरे ढोला ने उन्हें मारु को लिवा लाने का आग्रह किया. सोलह-श्रंगार से सजी-धजी मालवणी जब अपने प्रियतम से मिलने संध्या के समय पहुंची तो ढोला मालवणी के समक्ष भी मारु को लिवा लाने का मन्तव्य प्रकट करने से अपने आप को नहीं रोक पाया. विरह के भावी वज्राघात के कारण मालवणी मुर्च्छित हो गई और होश आने पर रह-रहकर विलाप करने लगी. उसने जैसे-तैसे ढोला को दो वर्ष तक रोके रखा. अंतत: उसने अनुमति दे दी. रास्ते में ढोला को कई प्रकार की भ्रामक सूचनाएं मिली, लेकिन ढोला नहीं रुका. रात होते-होते ढोला पूंगल पहुंचा. मारु के आंनद का कोई ठिकाना न था. वह हर्ष के अतिरेक में खो गई. पिंगल ने ढेर सारा दहेज देकर ढोला और मारु को बड़े उत्साह के साथ नरवर के लिये विदा किया.
किंतु मार्ग में फिर एक अप्रत्याशित घटना घट गई. मारु को पीणा सांप ने डस लिया. यह देख ढोला का ह्रदय फटने लगा. वह स्वयं भी मारु के साथ चिता में जलने के लिये तत्पर जो गया. संयोगवश उसी रास्ते से एक योगी और योगिनी निकल रहे थे. योगी द्वारा मारु के ऊपर अभिमंत्रित जल छिड़कने से मारु जीवित हो उठी. ढोला को लगा जैसे अमावस की काली रात, पुर्णिमा कि उजली रात में बदल गई.
ढोला-मारु शीघ्रातिशीघ्र नरवर पहुंँचने का उपक्रम करने लगे मगर दोनों के दुर्भाग्य ने अभी तक उनका पीछा नहीं छोड़ा. इस बार ऊमरा-सुमरा घात लगाकर ढोला-मारु के पिछे पड़ गए, लेकिन दोनों फुर्ती से ऊँट पर बैठ कर ऊमरा-सुमरा के कपट जाल से मुक्त हो भाग निकले. आखिरकार ढोला-मारु को सकुशल नरवर पहुंचने में सफलता मिली. बड़े हर्ष और उत्साह के साथ दोनों का नरवर में स्वागत हुआ. ढोला अपनी दोनों पत्नियों के साथ आंनदमय जीवन व्यतीत करने लगा.
ना जाने क्युं? / तेरे नाम
*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*
अपने हर गम-ए-दिल को चुपा के
कुछ अपनों के लिये मुस्कुराना सीखों
है जो ये नम आंखे ये भीगी पलकें
हवाओं को इनका आंचल बनाना सीखों
जो नहीं है आज ज़िन्दगी में कोई बहार तो
कान्टों मे भी खुश रहना सीखों
कतरा-कतरा वक्त युहीं हाथ से फिसल जायेगा
भुला के अपना गम औरों के साथ मुस्कुरना सीखों
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है
*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
उस ने दूर रहने का मशवरा भी लिखा है
साथ ही मोहब्बत का वास्ता भी लिखा है
उस ने यह भी लिखा है मेरे घर नहीं आना
और साफ़ लफ़्ज़ों में रास्ता भी लिखा है
कुछ शब्द लिखे है ज़ब्त की नसीहत में
कुछ शब्दों मे उस ने होसला भी लिखा है
शुक्रिया भी लिखा है दिल से याद करने का
दिल से दिल का है कितना फ़ासला भी लिखा है.
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~यहीं तो है.
*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
क्या-क्या बातें वो अपनी तहरीर में लिखती है
ईक नई तकदीर मेरी तकदीर में लिखती है
वो ऐसी हमदर्द कि अपने प्यार के सारे अल्फ़ाज़
मेरे हाथों की ईक-ईक लकीर में लिखती है
कोई राज़ छुपाना शायद पसन्द नहीं उसे
वो अपना हर ख्वाब खुली ताबीर में लिखती है
मैं उस का ईक मन-चाहा कैदी हुँ इसलिये
नाम मेरा वो ज़ुल्फ़ों की ज़ंजीर में लिखती है
भुल उठे ईक-ईक तस्व्सुर उस के चेहरे से
सारी कहानी वो अपनी तस्वीर में लिखती है
खूब चहकती है वो खत के पहले हिस्से में
लेकिन दिल की सच्ची बात आखिर में लिखती है
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*यहीं तो है.
*~*~*~*जानवर*~*~*~*
जब सावन में तन्हा भीगोगे
जब आंगन खाली पाओगे
जब "साहिल" से टकराती लेहरों में
अपनी तन्हाई में खो जाओगे
जब रात के तन्हा दामन में
तुम चाँद को आधा पाओगे
जब खुद से बातें करते-करते
तुम दूर कहीं खो जाओगे
जब दिल की बात छुपाने को
तुम हम से नज़र चुराओगे
मैं तुम से मुहब्बत करता हुँ
हर बार यह सुनना चाहोगे
इन सब लम्हों में जान लेना के
तुम नही "हम" बन जाओगे.
*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*यहीं तो है
*~*~*~*जानवर*~*~*~*
अब के युँ दिल को सज़ा दी हमने
उसकी हर बात भुला दी हमने
एक-एक फूल बहुत याद आये
शाख-ऐ-गुल जब वो जला दी हमने
आज तक जिस पर वो शरमाते है
बात वो कब की भुला दी हमने
शहर-ऐ-जहन रख से आबाद हुआ
आग जब दिल की बुझा दी हमने
आज फिर याद बहुत आये वो
आज फिर उसको दुआ दी हमने
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*यहीं तो है.
ना सुनो तो भी........
*~*~*~*~*~*~*~जानवर~*~**~*~*~*~*
"बीते सपनों में आये बिना तुम्हारे
ऐसी तो कोई रात नहीं जीवन में।"
~*~*~*~*~*तेरे नाम ~*~*~*~*~* यहीं तो है।
*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
गुल से क्यों मुहब्बत है, तितलियां समझती है ।
मां के दिल में क्या गम है, बेटियां समझती हैं ।
रूखसती की शहनाई गूंजती है, आंगन में ।
दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती है ।
तोड़ कर मसलते हो, नर्म नर्म फुलों को ,
दर्द किस को कहते हैं, डालियां समझती है ।
घर में एक जवां बेवा कौन उस का दुख जानें ,
वाम व दर समझते हैं, खिड़कियां समझती है ।
मर घरों में आती है, रोज एक नई दुल्हन ,
किस तरह जली होगी, अर्थियां समझती है ।
कौन मर गया होगा कौन हो गया घायल,
ये तो हर फसादों में गोलियां समझती है ।
मुफलिसों की बस्ती से दूर क्यों उजाले हैं ,
झोपड़ों में घुटती हुई सिसकियां समझती हैं ।
~*~*~*~*~*तेरे नाम ~*~*~*~*~* यहीं तो है।
*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
अपने साये से भी अश्कों को छुपा कर रोना।
जब भी रोना हो चरागों को बुझा कर रोना।
हाथ भी जाते हुये वो तो मिलकर ना गये।
मैं ने चाहा जिसे सीने से लगा कर रोना।
तेरे दिवाने क क्या हाल किया है गम ने।
मुस्कुराते हुये लोगों में भी जा कर रोना।
लोग पढ लेते है चेहरे पर लिखी तहरीरें।
ईतना दुश्वर है लोगों से चुप कर रोना।
~*~*~*~*~*तेरे नाम ~*~*~*~*~* यहीं तो है।
*~*~*~*जानवर*~*~*~*
तुम्हारे गम से निस्बत भी बहुत थी,
कि जीने के लिये सुरत भी बहुत थी,
शिकस्त-ए-दिल तो इक दिन लाज़मी थी,
हमें उस से मोहब्ब्त भी बहुत थी,
हुई जो युं दरबदर तो युं कि मुझकों,
तुम्हारे घर कि चाहत भी बहुत थी,
था सामन-ए-सफ़र भी पास ओर कुछ,
मुझे जाने कि उज्ज्लत भी बहुत थी,
वो लडकी मर गयी कल रात आखिर,
उसे कुछ दिन से वहशत भी बहुत थी,
*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*यहीं तो है।
*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*
काश हम बेज़ुबान होते
ना फ़िर गम यु बयां होते
काश ना होती ज़िन्दगी कि समझना
फ़िर युं अफ़साने जवान होते
काश ना ख्वहिश होती कुछ पाने कि
ना फ़िर कुछ खोने क गम यहां होते
अगर तोड जाता कोई आशियां हमारा
फ़िर भी खूबसुरत सारे समान होते
लुट जाती अगर रोशनी-ए-ज़िन्दगी,
फ़िर भी अन्धेरे ना यहां होते
टूट्ते हुए भी बे-सुभाह होते
काश हम बेज़ुबान होते
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है।