<<<<<गोविन्द K.>>>>>>

Wednesday, October 7, 2009 · 0 comments

*~*~*जानवर*~*~*~*
चलो फिर ख्वाब देखते है
दिल कि ज़मीन में उम्मीद के
कुछ बीज बोते है
बे मन्ज़िल सफर में
गुबार से अटे चेहरे को धोते है
चलो हम फिर से कोई ख्वाब देखते है
गुलशन-ए-दिल में
नये मौसम उगाते है
किनारों की ख्वाहिश में
भीगे बदन को फिर से सुखाते है
फिर कोयलों की बोली में
कुछ गीत सुहाने लिखते है
कुछ शेर पुराने लिखते है
कुछ नये अफसाने लिखते है
दिल की ख्वाहिश का
फिर से एहतेराम करते है
चलो यह काम करते है
कोइ ख्वाब देखते है
फिर से गीली रेत पर
सपनों के महल बनाते है
उन महलों की छतों पर
फिर कोयलों को सुनते है
बिखरी हुई खाक से
हम फिर मोती मिलन के चुनते है
और बिखरी माला पिरोते है
चलो फिर ख्वाब देखते है
चलो नये ख्वाब देखते है
*~*~*तेरे नाम *~*~*यही तो है~*~*

Tuesday, July 28, 2009 · 0 comments


इस तरह तो किसी को........

· 2 comments


*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
टुटा हुआ शीशा फिर जोड़ा नहीं जाता
आँख से निकला हुआ आँसू फिर वापस नहीं आता
तुम तो कह कर भुल चुके हो सब कुछ
लेकिन मुझसे वो पल भुलाया नहीं जाता
तेरी मोहब्बत ने जंजीरे डाली है ऐसी
कि छुड़ाना भी चाहुँ तो छुड़ाया नहीं जाता
महफिल में भी मुझ को तन्हाईं नजर आती है
तेरे बिना ये दिल कहीं और लगाया नहीं जाता
मेरे दिल की दीवारों पर सिर्फ़ तेरा ही नाम लिखा है
मिटाना भी चाहुँ तो मिटाया नहीं जाता
सांस रुकने से पहले एक झलक दिखा जाना
बेवफा जिन्दगी का ऐतबार किया नहीं जाता
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*


***********************************************
मैं तुझे देख तो सकता हुं, मगर छु नहीं सकता,
तु झील में उतरे हुये मंजर की तरह है॥
************************************* गोविन्द K.

तु जो नहीं..........कुछ भी नहीं

Monday, July 27, 2009 · 1 comments



*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
अगर गुफ्तगु का आगाज में करता
झिझकती, बिगड़ती मगर मान जाती
जो मैं बढ़ कर उसके कदम रोक लेता
वो पांव पटकती मगर मान जाती
अगर चंद कलियाँ उसे पैश करता
वो दामन झटकती मगर मान जाती
मैं कहता ‘चलों तुम को घुमा कर लाता हुँ’
अकड़ती, झिझकती मगर मान जाती
जो मैं उसको तकता.....ज़मीन को वो तकती
अंगुठा रगड़ती मगर मान जाती
जो पीछे से आँचल का फंदा बनाता
बहुत तिलमिलाती मगर मान जाती
वो गुस्से में जो मुझ नाराज होती
बिखरती, तड़फती मगर मान जाती
जो कहता की ‘ राहों पर चलिये संभलकर’
उछलती, मटकती मगर मान जाती
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*
****************************************************
तुझसे तो कोई गिला नहीं है, किस्मत में मेरी सिला नहीं है
"खुशबू" का सौदा हो चुका है ओर फुल अभी खिला नहीं है.
****************************************** गोविन्द K.

हा फिर भी ऐसा ही हो..........

Saturday, July 25, 2009 · 1 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
फूल को छुने की खातिर कांटो से जख्मी होते है
जो झोली में आ गिरते थे उन्हें छुने से डर जाते है
जब बारिश बरसा करती थी...हम छतरी में छुप जाते थे
और जलती धुप में नंगे पांव हम छत पर उछला करते थे
जब पास वो होता था तो हम देख उस उसको ना सकते थे
जब दुर चला जाता था वो....हम आहट उसकी सुनते थे
जब सारी दुनियाँ सोती थी हम चाँद से खेला करते थे
जब सारी दुनियाँ उठ जाती हम थक कर सो जाते
हम कितने पागल होते थे.....हम कैसे पागल होते थे
हम आज भी वैसे ही पागल है.......
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*


******************************************************
वो मुझसे मेरे इश्क का हिसाब मांग रहा है!!!!!
कितना पागल है........मुझसे मेरे जिन्दा रहने की वजह मांग रहा है......
वो मुझसे मेरी चाहत का सबुत मांग रहा है!!!!
कितना पागल है..........मुझसे मेरे वजुद का ही हिसाब मांग रहा है......
*********************************************** गोविन्द K.

जब भी टुटेगा......

Thursday, July 23, 2009 · 5 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
रोना भी जो चाहें तो वो रोने नहीं देता,
वो शख्स तो पलकें भी भिगोने नहीं देता...
वो रोज रुलाता है हमें ख्वाब में आकर,
सोना भी जो चाहें तो वो सोने नहीं देता.....
ये किस के इशारे पर उमड़ आये है बादल,
है कौन जो बारिश कभी होने नहीं देता...
आता है ख्यालों में मेरे कौन ये अक्सर,
जो मुझे किसी ओर का होने नहीं देता....
इस डर से कि कहीं तोड़ कर आँसू ना बहायें,
बच्चों को मैं मिट्टी के खिलोने नहीं देता...
एक शख्स है ऐसा मेरी हस्ती में अभी तक,
जो बोझ अकेले मुझे ढोने नहीं देता...
मैं हुँ कि बहाता हुं तेरी याद में आँसू,
और तु है कि अश्कों को पिरोने नहीं देता....
वो चेहरा अजब है जिसे पाकर मैं अभी तक,
खोना भी जो चाहुँ तो वो खोने नहीं देता...
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*

इसीलिये तो........

Tuesday, July 21, 2009 · 2 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
जमीन थी मेरी......मगर आसमां उसका का था
इसी लिये मुझे खुद पर........ गुमान उसका था
मैं अब जो धुप में जलता हुं......उसी का है करम
मैं जिसकी छांव में था.......वो पेड़ का था
वो जिसके वास्ते लड़ता रहता था मैं सबसे
मेरे खिलाफ़ ही..............हर एक बयान उसका था
वो जिसने मुझ को हमेशा डाला मुश्किल में
ये पहली बार था..........की इम्तिहान उसका था
तुम मेरी जान हो........ यह भी उसी का कहना था
तुम जख्म-ए-जान हो........यह भी बयान उसका था
जो रोशनी के लिये तरसता था..........शहर भर में
तमाम शहर से..........रोशन मकान उसका था
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*

************************************
इससे ज्यादा दु: ख की “काका" और क्या मिसाल दुं,
वो मुझसे लिपट कर रोये किसी ओर के लिये॥
*****************************गोविन्द K.

Wednesday, July 15, 2009 · 3 comments


*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
जब तेरी याद में यह दिल मचल जाता है
आँख बन्द करता हूं और अश्क निकल जाता है
तेरी तस्वीर को सीने से लगा कर जब मैं
खुब रो लेता हुँ तो दिल बहल जाता है
मेरे जिस हाथ ने थामा था कभी तेरा हाथ
दिल पर वो हाथ रखुं, दिल संभल जाता है
तेरी “खुशबु" की महक है मेरे घर में अब तक
कोई गम भी यहां आ जाये तो टल जाता है
कितना बेबस है वो इंसान जिसे मोहब्ब्त में
प्यार मिलता नहीं और वक्त बदल जाता है
वक्त-ए-रुखसत मेरी आंखों ने किया था जो सवाल
अब दुआ बन कर मेरे अश्क में ढल जाता है
आज जलता है यह सीना तो इसे जल जाने दो
चांद देखे बिना सुरज भी तो ढल जाता है
इश्क करना बहुत आसान था लेकिन अब दिल
इश्क का नाम भी सुन ले तो दहल जाता है
शायर मैं था तो नहीं पर तुम्हारी चाहत में
अब तो हर अश्क से एक शैर निकल जाता है
आखिरी वक्त में जब लौट के आये वो
आंख हंसती रही और दम निकल जाता है
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*

तुम्हें मैं याद आती हुँ?

Wednesday, July 1, 2009 · 4 comments

*~*~*~*जानवर*~*~*~*
अजब पागल सी लड़की है,
मुझे हर खत में लिखती है
“मुझे तुम याद करते हो?
तुम्हें मैं याद आती हूँ?"

मेरी बातें सताती है,
मेरी नींदें जगाती है,
मेरी आँखे रुलाती है,
दिसम्बर की सुनहरी धूप में अब भी टहलते हो?
किसी खामोश रास्ते से
कोई आवाज आती है?
थरथराती सर्द रातों में
तुम अब भी छत पर जाते हो?
फलक के सब सितारों को
मेरी बातें सुनाते हो?
किताबों से तुम्हारे इश्क में कोई कमी आई?
या मेरी याद की वजह से आँखों में नमी है?
अजब पागल सी लड़की है,
मुझे हर खत में लिखती.
जवाब उस को लिखता हुँ..
मेरी व्यस्तता देखो सुबह से शाम ऑफिस में रहता हुँ
फिर उस के बाद दुनियाँ की,
कई मजबूरीयाँ पांव में बेड़ी डाले रखती है,
मुझे खाली समय, चाहत से भरे सपने नहीं दिखते,
टहलने, जागने, रोने की मोहलत ही नहीं मिलती.
सितारों से मिले अरसा हुआ..नाराज हो शायद!!!!
किताबों से मेरा प्यार अभी वैसा ही है...
फर्क इतना पड़ा है, अब उन्हें अरसे में पढ़ता हुँ.
तुम्हें किसने कहा पगली की “मैं तुम्हें याद करता हुँ!"
मैं तो खुद को भुलने की कोशिश में लगा रहता हुँ!
तुम्हें ना याद आने की कोशिश में लगा रहता हुँ!
मगर यह कोशिश मेरी बहुत नाकाम रहती है.
मेरे दिन-रात में अब भी तुम्हारी शाम रहती है,
मेरे लफ्जों कि हर माला “तेरे नाम" रहती है.
तुम्हें किसने कहा पगली की “मैं तुम्हें याद करता हुँ!"
पुरानी बात है जो लोग अक्सर गुनगुनाते है,
‘हम याद उन्हें करते है, जिन्हें हम भुल जाते है’
अजब पागल सी लड़की हो,
मेरी व्यस्तता देखो
तुम्हें दिल से भुलाऊं!, तुम्हारी याद ना आये!
तुम्हें दिल से भुलाने की मुझे फुरसत नहीं मिलती,
और इस व्यस्त जीवन में
तुम्हारे खत का एक जुमला
“तुम्हें मैं याद आती हुँ?"
मेरी चाहत कि शिद्दत में कमी होने नहीं देता,
बहुत रातें जागता है, मुझे सोने नहीं देता,
इसलिये अगली बार अपने खत में यह मत लिखना.
अजब पागल सी लड़की है, मुझे फिर भी यह लिखती है.....
मुझे तुम याद करते हो, तुम्हें मैं याद आती हुँ.
*~*~*~*तेर नाम *~*~*~*यही तो है*~*~*~*

अगर तुम...एक बार....

Tuesday, June 30, 2009 · 5 comments

*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
मेरी जिन्दगी का तसव्वुर मेरे हाथ की लकीरे,
इन्हें काश तुम बदलते तो कुछ और बात होती.
ये खुले-खुले से गेसू, इन्हें लाख तुम संवारो,
मेरे हाथ से संवरते तो कुछ और बात होती.
मैं तेरा आईना था, मैं तेरा आईना हुँ,
मेरे सामने संवरते तो कुछ और बात होती.
अभी आँख ही लड़ी थी, कि गिरा दियआ नज़रों से,
ये जो सिलसीला बढ़ाते, तो कुछ और बात होती.
"काका" अपनी जिन्दगी का तो कुछ गम ही नहीं है,
तेरे दरवाजे पर मरते, तो कुछ और बात होती.
*~*~*~*~*तेरे नाम *~*~*~*~*यही तो है*~*~*~*


>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
आदत नहीं है मुँह ढँक कर सोने की मुझको,
मुझ पर क्या गुजरेगी!!! जब कब्र में सोना होगा..
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>गोविन्द K. >>>


तुम्हारे बिना ये भी तो...........

Monday, May 18, 2009 · 0 comments

*~*~*~*~*~*~* जानवर *~*~*~*~*~*~*
दिल जलेगा तो जमाने में उजाला होगा,
हुस्न जर्रों का सितारों से निराला होगा.

कौन जाने ये मुहब्बत कि सज़ा है की सिला,
हम “साहिल" पर पहुँचे तो किनारा ना मिला.
बुझ गया चाँद किसी दर्द भरे दिल की तरह,
रात का रंग अभी और भी काला होगा,
देखना रोयेगी, फरयाद करेगी दुनियाँ,
हम ना होंगे तो हमें याद करेगी दुनियाँ,
अपने जीने की अदा भी अनोखी सब से,
अपने मरने का अन्दाज भी निराला होगा...!
*~*~*~* तेरे नाम*~*~*~*~* यही तो है *~*~*

कोई तो बात है......

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*~*~*~*~*~*~* जानवर *~*~*~*~*~*~*
गमों की जमीन पर कोई “खुशी" का मचान नहीं है,
क्या हुं? कौन हुं मैं? मुझे अपनी पहचान नहीं है,
काश!!! उड़ पाता कहीं ऊँचे अपने यह पँख फ़ैला कर,
अफ़सोस!!! मेरे मुकद्दर में कहीं आसमां नहीं है,

भीड़ में रह कर भी रहा हुँ सदा तन्हा मैं,
मेरे लिये किसी भी राह में कोई कारवाँ नहीं है,
गम छुपाने की हर अदा मालुम है मुझको,
देखो मेरी हँसी में कोई भी गम का निशां नहीं है,
अब तो हर सुबह गुजरेगी ऐसे ही आपस में गले मिल कर,
अब तो कोई भी मेरे और गम के दरमियां नहीं है,
इस दुनियाँ में सभी जीते है, कुछ आरजू ले कर,
अपना दिल है पत्थर का इसका कोई अरमां नहीं है..
*~*~*~*~*~*~* तेरे नाम*~*~*~*~* यही तो है *~*~*

ये सोचना की मैं.......

Wednesday, May 13, 2009 · 1 comments

*~*~*~*~*~*~*~*~जानवर*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
कहीं चांद रातों में खो गया, कहीं चांदनी भी भटक गई,
मैं चराग, वो भी बुझा हुआ, मेरी रात कैसे चमक गई?
मेरी दास्तान को आरजु थी, तेरी नरम पलकों की छांव में,

मेरे साथ था तुझे जागना, तेरी आँख कैसे झपक गई?
भला हम मिले भी तो क्या मिले! वही दुरियाँ, वही फासले,
ना कभी हमारे कदम बढ़े, ना कभी तुम्हारी झिझक गई.
तेरे हाथ से मेरे होंठों तक वही इंतजार की प्यास है,
मेरे नाम की जो शराब थी, कहीं रास्ते में छलक गई.
तुझे भुल जाने की कोशिशें कभी कामयाब ना हो सकी,
तेरी याद शाख-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई.
*~*~*~*~*~*~*~*~तेरे नाम*~*~*~*~*~*~*~*~ यही तो है

कैसे भी हो.....

Tuesday, May 12, 2009 · 2 comments

*~*~*~*~*~*जानवर~*~*~*~*~*
बहारों में पतझड़ के साये है,
नजारों पर अन्धेरे से छाये है,
फुलों के दामन में कांटे है,
बागों में फैले सन्नाटे है,
कोयल की कूक अनजानी है,
हंसी की आँखों में पानी है,
खुशनुमा झोंकों में महक नहीं,
आसमां में पंछियों की चहक नहीं,
ख्यालों की कोई जंजीरे नहीं,
ख्वाबों सी कोई तकदीरें नही,
दिल की धड़कनों में सिर्फ़ आहें है,
गलत मन्जिलों पर जाती हुई राहें है,
नाकामयाब सी कई कोशिशे है,
भोलेपन में छुपी साजिशे है,
हम इस छल भरी दुनियाँ में,
जाये तो जाये कहाँ???????
*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*यही तो
है

कभी तो........

Monday, April 27, 2009 · 1 comments



*~*~*~*~*~जानवर~*~*~*~*~*
रात में ख्यालों में आती हो तुम,
कभी सामने आकर भी देखो!
हम से बातें तो रोज करते हो तुम,
कभी हमारी तरफ मुस्कराकर भी देखो!
हमारी नज़र बहुत कुछ कह देती है,
कभी हमें नज़रों से समझ कर तो देखो!
हमसे दोस्ती का रिश्ता है तुम्हारा,
कभी हम से दिल लगा कर तो देखो!
हमारी बातों ने तुम्हारा दिल कहीं बार बहलाया है,
कभी अपनी बातों से हमें हँसा कर तो देखो!
मुझसे मिलकर अंजाने में, दिल में बसने लगती हो,
कभी हमें भी अपने दिल में बसा कर तो देखो!
हर मुश्किल राह भी आसान हो जायेगी बस,
हम पर एक बार ऐतबार कर के तो देखो!
हम तुम्हें जिन्दगी में हर "खुशी" देंगे,
बस एक बार हमें प्यार कर के तो देखो!
तुम्हें पाने के लिये हर इम्तिहान देंगे हम
हमें कभी आजमा कर तो देखो!
तुम कहते हो की बहुत मुश्किल है मुझे अपनाना,
एक बार हमें अपना बना कर तो देखो!!!!!!!!!!
*~*~*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~यही तो है

जब भी तुम्हारी याद.......

Monday, March 30, 2009 · 2 comments

~*~*~*~*~*~जानवर~*~*~*~*~*~
ऎ बेवफा जिन्दगी क्यों मुझसे दगा करती हो?
जो भी बना अपना, उसे पराया करती हो,
चाहा जो मुस्कुराना तो आँखे भीगोती हो.
अब यहाँ कोई नहीं, क्यों इन्तजार करवाती हो?
कौन है यहाँ जो सुलझाये उलझी जुल्फ़ें,
क्यों टूटे दिलों को युं जलाती हो?
अगर गम-ए-दर्द का ही समुन्दर हो तो,
क्यों चाहत का मीठा दर्द जगाती हो?
शाम ढले जो पागल दिल सोना चाहे,
क्यों मुझे रुलाने चली आती हो?
जिन्दगी क्यों मुझसे दगा करती हो?????
*~*~*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~यही तो है

तुम ही तो थे.........

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~*~*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*~*
तुम क्या जानों यादों में खो कर आँखें कितना रोती है,
दिल में अपने दर्द समा कर आँखें कितना रोती है,
तुम क्या जानों सावन का मौसम कितनी आग लगाता है,
बारिश कि बुदों को छुकर आँखें कितना रोती है,
अब तो छोटी सी बात पर भी यह दिल भर सा जाता है,
हल्की सी दिल को लगती है ठोकर आँखें कितना रोती है,
अब तो यह जीना भी हम को कोई बोझ सा लगता है,
दिन भर उस बात को याद कर आँखें कितना रोती है,
जख्म-जख्म है आँखें मेरी माज़ी की परछाई से,
अपने अन्दर लहू डूबों कर आँखें कितना रोती है,
तुम एक दुनियाँ नई गये हो तुम को क्या एहसास,
इन राहों में तन्हा सी हो कर आँखें कितना रोती है..
*~*~*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~*~*~*यही तो है.

ऐसा तो नहीं होता है???

Tuesday, March 17, 2009 · 5 comments

*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~**~*~*~*
धुंआ बना कर फिज़ा में उड़ा दिया मुझको,
मैं जल रहा था किसी ने बुझा दिया मुझको.
खड़ा हुं आज भी रोटी के चार टुकड़ों के लिये,
सवाल यह है किताबों ने क्या दिया मुझको???
सफैद रंग कि चादर लपैट कर मुझ पर,
बिजुका की तरह खैत पर किस ने सजा दिया मुझको?
मैं एक जरा बुलन्दी को छुने निकल था,
हवा ने थाम कर, जमीन पर गिरा दिया मुझको..
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*~*~*यही तो है.

वो महाराणा प्रताप कठे?

Monday, March 2, 2009 · 8 comments

**************************************************************************
वों
महाराणा प्रताप कठे?
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हळदीघाटी में समर में लड़यो, वो चेतक रो असवार कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?, वो एकलिंग दीवान कठे?
वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?, वो महाराणा प्रताप कठे?
मैं बाचों है इतिहासां में, मायड़ थे एड़ा पुत जण्या,
अन-बान लजायो नी थारो, रणधीरा वी सरदार बण्या,
बेरीया रा वरसु बादिळा सारा पड ग्या ऊण रे आगे,
वो झुक्यो नही नर नाहरियो, हिन्दवा सुरज मेवाड़ रतन
वो महाराणा प्रताप कठे? मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
ये माटी हळदीघाटी री लागे केसर और चंदन है,
माथा पर तिलक करो इण रो इण माटी ने निज वंदन है.
या रणभूमि तीरथ भूमि, दर्शन करवा मन ललचावे.
उण वीर-सुरमा री यादा हिवड़ा में जोश जगा जावे.
उण स्वामी भक्त चेतक री टापा, टप-टप री आवाज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
संकट रा दन देख्या जतरा, वे आज कुण देख पावेला,
राणा रा बेटा-बेटी न, रोटी घास री खावेला
ले संकट ने वरदान समझ, वो आजादी को रखवारो,
मेवाड़ भौम री पति राखण ने, कदै भले झुकवारो,
चरणा में धन रो ढेर कियो, दानी भामाशाह आज कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
भाई शक्ति बेरिया सूं मिल, भाई सूं लड़वा ने आयो,
राणा रो भायड़ प्रेम देख, शक्ति सिंग भी हे शरमायों,
औ नीला घोड़ा रा असवार, थे रुक जावो-थे रुक जावो
चरणा में आई प़डियो शक्ति, बोल्यो मैं होकर पछतायो.
वो गळे मिल्या भाई-भाई, जूं राम-भरत रो मिलन अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?, वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?
वट-वृक्ष पुराणॊं बोल्यो यो, सुण लो जावा वारा भाई
राणा रा किमज धरया तन पे, झाला मन्ना री नरवारी
भाळो राणा रो काहे चमक्यो, आँखां में बिजली कड़काई,
ई रगत-खळगता नाळा सूं, या धरती रगत री कहळाई
यो दरश देख अभिमानी रो जगती में अस्यों मनख कठे?
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
हळदीघाटी रे किला सूं शिव-पार्वती रण देख रिया
मेवाड़ी वीरा री ताकत, अपनी निजरिया में तौल रिया.
बोल्या शिवजी-सुण पार्वती मेवाड़ भौम री बलिहारी
जो आछा करम करे जग में, वो अठे जनम ले नर-नारी.
मूं श्याम एकलिंग रूप धरी सदियां सूं बैठो भला अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
मानवता रो धरम निभायो है, भैदभाव नी जाण्यो है
सेनानायक सूरी हकीम यू राणा रो ……….चुकायो हे
अरे जात-पात और ऊंच-नीच री बात अया ने नी भायी ही
अणी वास्ते राणा री प्रभुता जग ने दरशाई ही
वो सम्प्रदाय सदभाव री मिले है मिसाल आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
कुम्भलगढ़, गोगुन्दा, चावण्ड, हळदीघाटी ओर कोल्यारी
मेवाड़ भौम रा तीरथ है, राणा प्रताप री बलिहारी,
हे हरिद्वार, काशी, मथुरा, पुष्कर, गलता में स्नान करा,
सब तीरथा रा फल मिल जावे मेवाड़ भौम में जद विचरां.
कवि “माधव" नमन करे शत-शत, मोती मगरी पर आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?
अरे आज देश री सीमा पर संकट रा बादळ मंडराया,
ये पाकिस्तानी घुसपेठीया, भारत सीमा में घुस आया,
भारत रा वीर जवाना थे, याने यो सबक सिखा दिजो,
थे हो प्रताप रा ही वंशज, याने यो आज बता दिजो,
यो काशमीर भारत रो है, कुण आज आंख दिखावे आज अठे.
मायड़ थारो वो पुत कठे?
वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?

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कवि माधव दरक, कुम्भलगढ़, राजस्थान
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कवि माधव दरक द्वारा रचित एक अन्य गीत “माई एहड़ा पुत जण, जे रण प्रताप” को राजस्थान के राज गीत के रुप में गाया जाता है.

सिर्फ एक बार....

Friday, February 20, 2009 · 0 comments


* ~* ~* ~* ~* ~*जानवर* ~* ~* ~* ~* ~*
तेरे होठों की हंसी बनने का ख्वाब है,
तेरे आगोश मे सिमट जाने का ख्वाब है,

तु लाख बचाले दामन इश्क़ के हाथों,
आंसमां बनके तुझ पर छा जाने का ख्वाब है,
आजमाईश यु तो अच्छी नहीं होती इश्क़ की,
तु चाहे तो तेरी तकदीर बनाने क ख्वाब है,
वो मोत भी लोट जाये तेरे दरवाजे पर आके,
तुझ को ऐसी जिन्दगी देने का ख्वाब है॥
* ~* ~* ~* ~*तेरे नाम* ~* ~* ~* यही तो है।

वो भी एक वक्त था.....

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मैंने कहा था ना कि
मैं तुम्हारे ख्वाबों में आऊँगी,
इसी कारण सजने को- कल बाग में गई थी मैं, मेंहदी लाने।
निगोड़े काँटे, शायद दिल नहीं है उनमें, चुभ कर मुझमें, मुझे रोक रहे थे।
लेकिन तुमसे वादा किया था ना मैंने,
इसलिए बिना मेंहदी लिए मैं लौटती कैसे।
फिर कल शाम में मैं बड़ी बारीकी से मेंहदी को सिलवट पर पीसी।
हाँ, कुछ दर्द है हाथ में,
लेकिन क्या- कुछ नहीं।
एक बात कहूँ तुमसे,
शायद सिंदूरी आसमां को हमारे इकरार का पता था,
इसलिए कल रश्क से,
वह सूरज को लेकर पहले हीं चल दिया।
फिर तुम्हारे लिए,
बड़े प्यार से मैंने अपने हाथों पर मेंहदी रची ।
कल वक्त पर आई थी ना मैं,
तुम्हारे ख्वाबों में,
आखिर तुमसे वादा जो किया था मैंने।
एक और बात कहूँ,
कल से बहुत भूखी हूँ मैं,
हाथों में मेंहदी थी ना,
सो, कुछ खा नहीं पाई।
अभी सोने जा रही हूँ,
अब तुम मेरे ख्वाबों में आकर - मुझे कुछ खिला दो ना।

बस अब आ भी जाओ......

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जिस को देखूं साथ तुम्हारे , मुझ को राधा दिखती है,
दूर कहीं इक मीरा बैठी, गीत तुम्हारे लिखती है।
तुम को सोचा करती है, आँखों में पानी भरती है,
उस पानी से लिखती है, लिख के ख़ुद ही पढ़ती है।
यूँ ही पूजा करते करते, कितने ही युग बीत गाये,
आँखें बंद किए आँखों से, कितने जीवन रीत गाये।
आँखें खोले इस जीवन में, पलकों में तुम को भरना है,
जिस दिल से पूजा उस दिल से, प्यार तुम्हे अब करना है।
आडा तिरछा भाग्य युगों से, तुम सीधा साधा कर दो,
बाहों में भर लो तुम कान्हा, मीरा को राधा कर दो,
बाहों में भर लो तुम कान्हा, मीरा को राधा कर दो॥

तुम फ़िर भी......

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**************जानवर**************
कहा था ना इस तरह सोते हुए छोड़ कर मत जाना
मुझे बेशक जगा देना,
बता देते मुहब्बत के सफ़र मे साथ मेरे चल नहीं सकते,
जुदाई के सफर में साथ मेरे चल नहीं सकते,
तुम्हें रास्ता बदलना है मेरी हद से निकलना है,
तुम्हें किस बात का डर था,
तुम्हें जाने नहीं देता?
कहीं पर कैद कर लेता?
अरे पागल मुहबत की तबियत में जबरदस्ती नहीं होती,
जिसे रास्ता बदलना हो उसे रास्ता बदलने से
जिसे हद से निकलना हो,
उसे हद से निकलने से,
ना कोई रोक पया है,
ना कोई रोक पाएंगा.
तुम्हें किस बात का डर था?
मुझे बेशक जगा देते,
मैं तुमकों देख ही लेता,
तुम्हें कोई दुआ देता,
कम से कम युं तो ना होता,
मेरे साथ...! हकीकत है,
तुम्हारें बाद खोने के लिये कुछ भी नहीं बाकी,
मगर खोने से डरता हुँ,
मैं अब सोने से डरता हुँ॥
*********तेरे नाम****** यही तो है*******

श्रीकृष्ण/ देवल आशीष की नज़र में

Thursday, February 19, 2009 · 3 comments

"विश्व को मोहमयी महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा,
सारथी तो कभी प्रेमी बना तो कभी गुरु धर्म निभा गया कान्हा,
रूप विराट धरा तो धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा,
रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा,

चोरी छुपे चढ़ बैठा अटारी पे चोरी से माखन खा गया कान्हा,
गोपियों के कभी चीर चुराए कभी मटकी चटका गया कान्हा,
घाघ था घोर बड़ा चितचोर था चोरी में नाम कमा गया कान्हा,
मीरा के नैन की रैन की नींद और राधा का चैन चुरा गया कान्हा,

राधा नें त्याग का पंथ बुहारा तो पंथ पे फूल बिछा गया कान्हा,
राधा नें प्रेम की आन निभाई तो आन का मान बढ़ा गया कान्हा,
कान्हा के तेज को भा गई राधा के रूप को भा गया कान्हा,
कान्हा को कान्हा बना गई राधा तो राधा को राधा बना गया कान्हा,

गोपियाँ गोकुल में थी अनेक परन्तु गोपाल को भा गई राधा,
बाँध के पाश में नाग नथैया को काम विजेता बना गई राधा,
काम विजेता को प्रेम प्रणेता को प्रेम पियूष पिला गई राधा,
विश्व को नाच नाचता है जो उस श्याम को नाच नचा गई राधा,

त्यागियों में अनुरागियों में बडभागी थी नाम लिखा गई राधा,
रंग में कान्हा के ऐसी रंगी रंग कान्हा के रंग नहा गई राधा,
प्रेम है भक्ति से भी बढ़ के यह बात सभी को सिखा गई राधा,
संत महंत तो ध्याया किए माखन चोर को पा गई राधा,

ब्याही न श्याम के संग न द्वारिका मथुरा मिथिला गई राधा,
पायी न रुक्मिणी सा धन वैभव सम्पदा को ठुकरा गई राधा,
किंतु उपाधि औ मान गोपाल की रानियों से बढ़ पा गई राधा,
ज्ञानी बड़ी अभिमानी पटरानी को पानी पिला गई राधा,

हार के श्याम को जीत गई अनुराग का अर्थ बता गई राधा,
पीर पे पीर सही पर प्रेम को शाश्वत कीर्ति दिला गई राधा,
कान्हा को पा सकती थी प्रिया पर प्रीत की रीत निभा गई राधा,
कृष्ण नें लाख कहा पर संग में न गई तो फिर न गई राधा."
**************************************************देवल आशीष

तुम तो ऐसे नहीं थे.......

Tuesday, February 17, 2009 · 1 comments


*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*
यही वफ़ा का सिला है, तो कोई बात नहीं,
ये दर्द तुमने दिया है, तो कोई बात नहीं.
यहीं बहुत है की तुम देखते हो "साहिल" से,
मेरी कश्ती डूब रही है, तो कोई बात नहीं.
रखा था आशियाना-ए-दिल में छूपा कर तुमको,
वो घर तुमने छोड़ दिया है, तो कोई बात नहीं.
तुम्हीं ने आईना-ए-दिल मेरा बनाया था,
तुम्हीं ने तोड़ दिया है, तो कोई बात नहीं
किसकी मजाल कहे कोई मुझको दीवाना,
अगर यह तुमने कहा है, तो कोई बात नहीं.
इश्क के फूल भी खिलते है, बिखर जाते है,
जख्म कैसे भी हो, कुछ रोज में भर जाते है.
उन ख्वाबों में अब कोई नही और हम भी नहीं,
इतने रोज से आये है, चुपचाप गुजर जाते है,
नर्म आवाज, भोली बातें, नरम लहजा,
पहली बारिश में ही, सब रंग उतर जाते है.
रास्ता रोके खड़ी है, वही उलझन कब से,
कोई पुछे तो कहें क्या की किधर जाते है??
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है
***********************************साथ में जावेद अख्तर

ख्वाहिश.....

Saturday, February 14, 2009 · 2 comments


*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*~*
काश मैं तेरे हसीन हाथों का कँगन होता,
तु बड़े चाव से.....बड़े मन के साथ,
अपनी नाजुक सी कलाई में चढ़ाती मुझको,
और बेताबी से फुरसत के लम्हों में,
तु किसी सोच में डूबकर जो घुमाती मुझको,
मैं तेरे हाथ की "खुशबू" से महक-सा जाता,
जब कभी मुड़ में आकर चुमा करती मुझको,
तेरे होठों कि हिद्त से ढक-सा जाता,
रात को जब भी तु नींद के सफर पर जाती,
मैं तेरे हाथ का एक तकिया बन जाता,
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है।

यार को मैंने.....

Thursday, February 5, 2009 · 1 comments

***************जानवर***************
कुछ दिन पहले मुहब्बत को मुहब्बत समझा हमने,
मुहब्बत हुई, मुहब्बत को अपना समझा हमने.
मुहब्बत में इस कदर मदहोश हो गये,
इस कि बेवफाई को वफा समझा हमने.
जख्म इस कदर मुहब्बत ने दिये,
इन जख्मों को फुल समझा हमने.
मुहब्बत कि चीख-ओ-पुकार इस कदर थी,
आस-पास के लोगों के रोने को हसनां समझा हमने.
मुहब्बत कि शिद्दत में आंखें इस कदर चौंधिया गये,
हर चमकती हुई चीज को सोना समझा हमने.
दीवाना इस कदर मुहब्बत ने बनाया हमको,
अपनों को बैगाना और "उनको" अपना समझा हमने.
मुहब्बत कि यादें दिल पर कुछ युं नक्श कर गई,
भुलने कि कोशिश में खुद को ही भुला दिया हमने.
**********तेरे नाम*************यही तो है.

वो तेरा नाम था.....

Monday, February 2, 2009 ·

***********जानवर************
वो कुछ सुनता तो मैं कहती,
मुझे कुछ और कहना था.
वो पल भर को जो रुक जाता,
मुझे कुछ और कहना था.
कहा उस ने सुनी मेरी, सुनी भी अनसुनी कर दी,
उसे मालुम था इतना,
मुझे कुछ और कहना था.
गलतफहमी ने बातों को युहीं बदल डाला वरना?
कहा कुछ ओर था, वो कुछ ओर समझा.
मुझे कुछ और कहना था.
********तेरे नाम********यही तो है

बरसात........

Saturday, January 31, 2009 · 1 comments

****************जानवर**************
गर्मी .... ओर पसीने से घबरा कर सोच रहा हूँ
की
अपने रब से बारिश की दुआ मांगु...
मगर ....
ये सोच कर खौफजदा सा.......हो जाता हूँ,
कि ..........
गर्मी की शिद्दत सहना बेहतर है.....
कहीं........
ऐसा ना हो कि बारिश बरसे......
.....ओर मेरी कच्ची बस्ती ही गिर जायेयेयेयेयेयेये?????????
**************तेरे नाम****************यही तो है

तेरे नाम……

Friday, January 30, 2009 · 0 comments

***********जानवर************
पत्थर बना दिया मुझे रोने नहीं दिया,
दामन भी तेरे गम ने भिगोने नहीं दिया.
तन्हाईयाँ तुम्हारा पता पुछती रही,
रात भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया.
आंखों में आकर बैठ गयी आंसुओं की लहर,
पलकों पर कोई ख्वाब, पर रोने नहीं दिया.
दिल को तुम्हारे नाम के आंसू अजीज थे,
दुनियाँ का दर्द दिल में समाने नहीं दिया.
"काका" युहीं उसकी याद चली हाथ थाम कर,
मेले में इस जहां के खोने नहीं दिया..
********तेरे नाम********यही तो है

दु:ख

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******जानवर*******
दु:ख अनमोल होते है,
कुदरत कि दौलत है,
कभी कुछ देकर जाते है,
कभी सब छीन ले जाते है,
कभी बैचेन करते है,
कभी जीना सिखाते है,
कभी बनाते है जब आंसू
उम्र भर लहु के रुलाते है,
कभी लबों की हँसी बन कर,
नई दुनियाँ सजाते है,
कभी मीठी कसक बन कर,
अंजान खालिश बन कर,
मकान-ए-दिल ये बनाते है,
किसी सूरत नहीं मिटते,
जो इन से दूर भागो तो,
कहीं जाने नहीं देते,
ना जिन्दा रहने देते है,
ना ये आजाद करते है,
नहीं जिस की दवा कोई,
ये ऐसा दर्द होते है,
मगर यह भी एक हकीकत है"काका"
हर एक को तो नहीं मिलते,
बड़े नायब होते है, दु:ख
"दु:ख अनमोल होते है...!!!!!
****तेरे नाम********यही तो है

सब कुछ……… “तेरे नाम” युहीं तो नहीं था……..

Wednesday, January 28, 2009 · 1 comments


************************जानवर**************************
वो कहती है कि क्या अब भी किसी के लिये लाल-हरी चुड़ीयाँ खरीदते हो?
मैं कहता हुँ अब किसी की कलाई पर यह रंग अच्छा नहीं लगता.
वो कहती है कि क्या अब भी किसी के आंचल को ‘आकाश’ लिखते हो?
मैं कहता हुँ अब किसी के आंचल में इतनी जगह कहाँ है?
वो कहती है कि क्या मेरे बाद किसी लड़की से मुहब्बत हुई है तुम्हे?
मैं कहता हुँ, मुहब्बत सिर्फ लड़की पर निर्भर नहीं होती.
वो कहती है कि जान! लहजे में बहुत उदासी सी है?
मैं कहता हुँ कि तितलियों ने भी मेरे दु:ख को महसुस किया है.
वो कहती है कि क्या अब भी मुझे बेवफा के नाम से याद करते हो?
मैं कहता हुँ कि "मेरी जिन्दगी" में यह लफ्ज़ शामिल ही नहीं.
वो कहती है कि कभी मेरे जिक्र पर रो भी लेते होऒगे?
मैं कहता हुँ कि मेरी आंखों को हर वक्त ही फुंआर अच्छी लगती है.
वो कहती है कि तुम्हारी बातों में इतनी गहराई क्यों है?
मैं कहता हुँ कि तेरी जुदाई का बाद मुझको यह ईनाम मिला है....
*******************तेरे नाम******************यही तो है 

दर्द

Tuesday, January 27, 2009 · 1 comments


***********जानवर************
बरसों हो गये राख बने हुये,
पर धुँआ उठता बार-बार है,
जमाना हो गया जख्म लगे हुये,
क्यों यह रीसता बार-बार है,
मुहब्बत दर्द बन कर रह गई,
अश्कों का सैलाब टुटता बार-बार है,
जीतने कि कोशिश करते है हमेशा,
पर मुकद्दर हराता बार-बार है,
कोई "साहिल" पर पहुचें भी कैसे?
यहाँ तुफान गुजरता बार-बार है,
हर लम्हा बदलती है फितरत जिनकी,
उनसे दिल डरता बार-बार है।
********तेरे नाम********यही तो है

कुछ तो है…….

Saturday, January 24, 2009 · 4 comments

*************जानवर****************
कोई एक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है,
हजारों ख्वाब आंखो में सजा कर कुछ नहीं मिलता.
उसे कहना कि पलकों पर ना टांके ख्वाब के झालर,
समन्दर के किनारे घर बना कर कुछ नहीं मिलता.
यह अच्छा है कि आपस के भ्रम ना टुट पायें,
कभी भी दोस्तों को आजमा कर कुछ नहीं मिलता.
फकत तुम से ही करता हूँ मैं सारे राज की बातें,
हर एक को दास्तां-ए-दिल सुना कर कुछ नहीं मिलता.
अम्ल के सुखते रंग में जरा सा खुन शामिल कर,
मेरे हम-दम फकत बातें बना कर कुछ नहीं मिलता.
************तेरे नाम***********यही तो है

तुम भी कैसे.........

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***********जानवर************
तुम मेरी आंख के तेवर ना भुला पाओगे,
अनकही बात को समझोगे तो याद आऊँगा.
इसी अन्दाज में होते थे मुखातिब मुझसे,
खत किसी और को लिखोगे तो याद आऊँगा.
सर्द रातों के महकते हुए सन्नाटों में,
जब किसी फूल को चुमोगे तो याद आऊँगा.
अब तेरे अश्क में होठों से छुड़ा लेता हुँ,
हाथ से खुद इन्हें पोछोगे तो याद आऊँगा.
शॉल पहनाएगा अब कौन दिसम्बर में तुम्हें,
बारिशों में कभी भीगोगे तो याद आऊँगा.
आज तो अपने दोस्तों की दोस्ती पर हो मगरूर बहुत,
जब कभी टूट के बिखरोंगे तो याद आऊँगा.
********तेरे नाम********यही तो है

यार को मैंने

Friday, January 23, 2009 · 3 comments

*********जानवर*********
तुम्हारा इश्क तुम्हारी वफा ही काफ़ी है,
तमाम उम्र यह आसरा ही काफ़ी है ...
जहां कहीं भी मिलो, मिल के मुस्कुरा देना,
"खुशी" के लिये यह सिलसिला ही काफ़ी है ..
मुझे बहार के मौसम से नहीं कुछ लेना,
तुम्हारे प्यार की रंगीन फ़िज़ा ही काफ़ी है ..
ये लोग कौन सी मन्ज़िल की बात करते है?
मुसाफ़िरों के लिये तो रास्ता ही काफ़ी है.
********तेरे नाम********यही तो है

वो मेरा था…….मेरा ही है।

Thursday, January 22, 2009 · 8 comments

आंखों का रंग, बात का लहजा बदल गया,
वो शख्स एक शाम में कितना बदल गया.
कुछ दिन तो मेरा अक्स रहा,
फिर युं हुआ कि खुद मेरा चेहरा बदल गया.
जब अपने-अपने हाल पर हम-तुम ना रह सके,
तो क्या हुआ जो हम से जमाना बदल गया.
कदमों तले जो रेत बिछी थी वो चल पड़ी,
उस ने छुड़ाया हाथ तो सहरा बदल गया.
कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं रही,
जाते ही एक शख्स के क्या-क्या बदल गया.
उठ कर चला गया कोई वाकये के दरमियान,
परदा उठा तो सारा तमाशा बदल गया.
हैरत से सारे लफ्ज़ उसे देखते रहे,
बातों में अपनी बात को कैसे बदल गया.
कहने को एक सेहन में दीवार ही बनी,
घर की फ़िज़ा मकान का नक्शा ही बदल गया.
शायद वफ़ा के खेल में उकता गया था वो,
मंज़िल के पास आकर जो रास्ता ही बदल गया.
“काका" किसी भी हाल पर दुनियाँ नहीं रही,
ताबीर खो गई कभी सपना बदल गया.
मंजर का रंग असल में साया था रंग का,
जिस ने उसे जिधर से भी देखा बदल गया.
अन्दर के मोसमों की खबर उस को हो गयी,
उसने बहार-ए-नाज़ का चेहरा बदल दिया.
आखों में जितने अश्क थे जुगनू से बन गये,
वो मुस्कुराया और मेरी दुनियाँ बदल गया.
अपनी गली में अपना ही घर ढूंढते है लोग,
“गोविन्द" यह कोन शहर का नक्शा बदल गया.

प्रेम कहानी_ढोला-मारु

Wednesday, January 21, 2009 · 0 comments

एक समय की बात है. पूंगल देश का राजा पिंगल था और उन्हीं दिनों नरवर नगर पर राजा नल का शासन था. पिंगल की रानी ने एक अत्यंत सुंदर कन्या को जन्म दिया जिसे मारवणी नाम दिया गया. इधर नल की रानी दमयंती ने एक सुंदर पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम साल्ह कुँवर रखा गया. साल्ह कुँवर को प्यार से ढोला कहकर पुकारा जाता था. पूंगल में अकाल पड़ने के कारण राजा पिंगल को सपरिवार राजा नल के देश नरवर के लिये प्रस्थान किया. नरवर में पिंगल का राज्योचित मान-सम्मान किया गया. उन्हें आवास के अलावा कुछ सेवक और घोड़े भी दिये गये. इस प्रकार दोनों परिवारों की परस्पर भेंट हुई. बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. ढोला की माँ दमयंती मारवणी के रुप को देख कर मोहित हो गई, सो उसने अपने ढोला के साथ मारवणी के विवाह का प्रस्ताव रखा. गहरे विचार-विमर्श के बाद प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया. एक बड़े उत्सव के रुप में दोनों का विधिवत विवाह सम्पन्न हुआ.

सुकाल होने पर पिंगल पूंगल लौट आया. मारवणी भी उसके साथ लौट आई क्योंकि वह अभी सुकुमार बालिका ही थी. समय बीता. उम्र के साथ-साथ मारवणी के शरीर में तरुणाई फुटने लगी. ढोला उसे स्वप्न्न में दिखने लगा. सखियों ने मारवणी की विरह व्यथा स रानी को अवगत कराया. ढोला को लाने के लिये संदेसवाहक भेजे गये मगर कोई भी संदेशवाहक वापस नहीं लौटा.

इन्हीं दिनों घोड़ों का एक सौदागर पुंगल आया और उसने पिंगल से भेंट की. सौदागर ने ढोला से अपनी भेंट में उसकी दानवीरता और शौर्य के बारे में पिंगल को अवगत कराया. उसने पिंगल को यह भी बताया कि ढोला मालवगढ़ के राजा की सुंदर कन्या मालवाणी के प्रेम में अनुरक्त है, इतना ही नहीं ढोला को मारवणी का कोई संदेश ना मिले इसके लिये वह जो कोई भी पुंगल से आता है, मालवणी उसे मरवा देती है.

मंदिर जाते हुए मारवणी ने अपने सखियों से ढोला के ये चर्चे सुने और वो व्यथित हो उठी. मारु ने अपना प्रेम संदेश ढाढ़ियों के माध्यम से ढोला को भिजवाया जिसमें अपने विरह की संपुर्ण वेदना बयान कर दी थी.

रात्रि के समय ढाढ़ियों ने मल्हार राग में मारु का संदेश गा-गाकर सुनाया. संदेश सुन ढोला व्यग्र हो उठा. सवेरे ढोला ने उन्हें मारु को लिवा लाने का आग्रह किया. सोलह-श्रंगार से सजी-धजी मालवणी जब अपने प्रियतम से मिलने संध्या के समय पहुंची तो ढोला मालवणी के समक्ष भी मारु को लिवा लाने का मन्तव्य प्रकट करने से अपने आप को नहीं रोक पाया. विरह के भावी वज्राघात के कारण मालवणी मुर्च्छित हो गई और होश आने पर रह-रहकर विलाप करने लगी. उसने जैसे-तैसे ढोला को दो वर्ष तक रोके रखा. अंतत: उसने अनुमति दे दी. रास्ते में ढोला को कई प्रकार की भ्रामक सूचनाएं मिली, लेकिन ढोला नहीं रुका. रात होते-होते ढोला पूंगल पहुंचा. मारु के आंनद का कोई ठिकाना न था. वह हर्ष के अतिरेक में खो गई. पिंगल ने ढेर सारा दहेज देकर ढोला और मारु को बड़े उत्साह के साथ नरवर के लिये विदा किया.

किंतु मार्ग में फिर एक अप्रत्याशित घटना घट गई. मारु को पीणा सांप ने डस लिया. यह देख ढोला का ह्रदय फटने लगा. वह स्वयं भी मारु के साथ चिता में जलने के लिये तत्पर जो गया. संयोगवश उसी रास्ते से एक योगी और योगिनी निकल रहे थे. योगी द्वारा मारु के ऊपर अभिमंत्रित जल छिड़कने से मारु जीवित हो उठी. ढोला को लगा जैसे अमावस की काली रात, पुर्णिमा कि उजली रात में बदल गई.

ढोला-मारु शीघ्रातिशीघ्र नरवर पहुंँचने का उपक्रम करने लगे मगर दोनों के दुर्भाग्य ने अभी तक उनका पीछा नहीं छोड़ा. इस बार ऊमरा-सुमरा घात लगाकर ढोला-मारु के पिछे पड़ गए, लेकिन दोनों फुर्ती से ऊँट पर बैठ कर ऊमरा-सुमरा के कपट जाल से मुक्त हो भाग निकले. आखिरकार ढोला-मारु को सकुशल नरवर पहुंचने में सफलता मिली. बड़े हर्ष और उत्साह के साथ दोनों का नरवर में स्वागत हुआ. ढोला अपनी दोनों पत्नियों के साथ आंनदमय जीवन व्यतीत करने लगा.

पहली-पहली बार…….

Friday, January 16, 2009 · 0 comments

ना जाने क्युं? / तेरे नाम

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*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*
अपने हर गम-ए-दिल को चुपा के
कुछ अपनों के लिये मुस्कुराना सीखों
है जो ये नम आंखे ये भीगी पलकें
हवाओं को इनका आंचल बनाना सीखों
जो नहीं है आज ज़िन्दगी में कोई बहार तो
कान्टों मे भी खुश रहना सीखों
कतरा-कतरा वक्त युहीं हाथ से फिसल जायेगा
भुला के अपना गम औरों के साथ मुस्कुरना सीखों
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है

*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
उस ने दूर रहने का मशवरा भी लिखा है
साथ ही मोहब्बत का वास्ता भी लिखा है
उस ने यह भी लिखा है मेरे घर नहीं आना
और साफ़ लफ़्ज़ों में रास्ता भी लिखा है
कुछ शब्द लिखे है ज़ब्त की नसीहत में
कुछ शब्दों मे उस ने होसला भी लिखा है
शुक्रिया भी लिखा है दिल से याद करने का
दिल से दिल का है कितना फ़ासला भी लिखा है.
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~यहीं तो है.

*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
क्या-क्या बातें वो अपनी तहरीर में लिखती है
ईक नई तकदीर मेरी तकदीर में लिखती है
वो ऐसी हमदर्द कि अपने प्यार के सारे अल्फ़ाज़
मेरे हाथों की ईक-ईक लकीर में लिखती है
कोई राज़ छुपाना शायद पसन्द नहीं उसे
वो अपना हर ख्वाब खुली ताबीर में लिखती है
मैं उस का ईक मन-चाहा कैदी हुँ इसलिये
नाम मेरा वो ज़ुल्फ़ों की ज़ंजीर में लिखती है
भुल उठे ईक-ईक तस्व्सुर उस के चेहरे से
सारी कहानी वो अपनी तस्वीर में लिखती है
खूब चहकती है वो खत के पहले हिस्से में
लेकिन दिल की सच्ची बात आखिर में लिखती है
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*यहीं तो है.

*~*~*~*जानवर*~*~*~*
जब सावन में तन्हा भीगोगे
जब आंगन खाली पाओगे
जब "साहिल" से टकराती लेहरों में
अपनी तन्हाई में खो जाओगे
जब रात के तन्हा दामन में
तुम चाँद को आधा पाओगे
जब खुद से बातें करते-करते
तुम दूर कहीं खो जाओगे
जब दिल की बात छुपाने को
तुम हम से नज़र चुराओगे
मैं तुम से मुहब्बत करता हुँ
हर बार यह सुनना चाहोगे
इन सब लम्हों में जान लेना के
तुम नही "हम" बन जाओगे.
*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*यहीं तो है


*~*~*~*जानवर*~*~*~*
अब के युँ दिल को सज़ा दी हमने
उसकी हर बात भुला दी हमने
एक-एक फूल बहुत याद आये
शाख-ऐ-गुल जब वो जला दी हमने
आज तक जिस पर वो शरमाते है
बात वो कब की भुला दी हमने
शहर-ऐ-जहन रख से आबाद हुआ
आग जब दिल की बुझा दी हमने
आज फिर याद बहुत आये वो
आज फिर उसको दुआ दी हमने
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*यहीं तो है.


ना सुनो तो भी........
*~*~*~*~*~*~*~जानवर~*~**~*~*~*~*
"बीते सपनों में आये बिना तुम्हारे
ऐसी तो कोई रात नहीं जीवन में।"
~*~*~*~*~*तेरे नाम ~*~*~*~*~* यहीं तो है।

*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
गुल से क्यों मुहब्बत है, तितलियां समझती है ।
मां के दिल में क्या गम है, बेटियां समझती हैं ।
रूखसती की शहनाई गूंजती है, आंगन में ।
दुल्हनों के आंसू को सहेलियां समझती है ।
तोड़ कर मसलते हो, नर्म नर्म फुलों को ,
दर्द किस को कहते हैं, डालियां समझती है ।
घर में एक जवां बेवा कौन उस का दुख जानें ,
वाम व दर समझते हैं, खिड़कियां समझती है ।
मर घरों में आती है, रोज एक नई दुल्हन ,
किस तरह जली होगी, अर्थियां समझती है ।
कौन मर गया होगा कौन हो गया घायल,
ये तो हर फसादों में गोलियां समझती है ।
मुफलिसों की बस्ती से दूर क्यों उजाले हैं ,
झोपड़ों में घुटती हुई सिसकियां समझती हैं ।
~*~*~*~*~*तेरे नाम ~*~*~*~*~* यहीं तो है।


*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*
अपने साये से भी अश्कों को छुपा कर रोना।
जब भी रोना हो चरागों को बुझा कर रोना।
हाथ भी जाते हुये वो तो मिलकर ना गये।
मैं ने चाहा जिसे सीने से लगा कर रोना।
तेरे दिवाने क क्या हाल किया है गम ने।
मुस्कुराते हुये लोगों में भी जा कर रोना।
लोग पढ लेते है चेहरे पर लिखी तहरीरें।
ईतना दुश्वर है लोगों से चुप कर रोना।
~*~*~*~*~*तेरे नाम ~*~*~*~*~* यहीं तो है।


*~*~*~*जानवर*~*~*~*
तुम्हारे गम से निस्बत भी बहुत थी,
कि जीने के लिये सुरत भी बहुत थी,
शिकस्त-ए-दिल तो इक दिन लाज़मी थी,
हमें उस से मोहब्ब्त भी बहुत थी,
हुई जो युं दरबदर तो युं कि मुझकों,
तुम्हारे घर कि चाहत भी बहुत थी,
था सामन-ए-सफ़र भी पास ओर कुछ,
मुझे जाने कि उज्ज्लत भी बहुत थी,
वो लडकी मर गयी कल रात आखिर,
उसे कुछ दिन से वहशत भी बहुत थी,
*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*यहीं तो है।

*~*~*~*~*~*जानवर*~*~*~*~*~*
काश हम बेज़ुबान होते
ना फ़िर गम यु बयां होते
काश ना होती ज़िन्दगी कि समझना
फ़िर युं अफ़साने जवान होते
काश ना ख्वहिश होती कुछ पाने कि
ना फ़िर कुछ खोने क गम यहां होते
अगर तोड जाता कोई आशियां हमारा
फ़िर भी खूबसुरत सारे समान होते
लुट जाती अगर रोशनी-ए-ज़िन्दगी,
फ़िर भी अन्धेरे ना यहां होते
टूट्ते हुए भी बे-सुभाह होते
काश हम बेज़ुबान होते
*~*~*~*~*तेरे नाम*~*~*~*~*---यहीं तो है।